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________________ अनुसार शासन अथवा सरकार राज्य का चौथा अंग है, जिस का समावेश स्वामी एवं अमात्य में हो जाता है। सरकार से ऐसे संगठन का बोध होता है जिस में कुछ लोग शासन करते है और अन्य उन की आज्ञाओं का पालन करते है। यह विचार भारतीय परिभाषा में सुस्पष्ट है । राजा और अमात्य सरकार का निर्माण करते हैं और जनपद चन की आज्ञा का पालन करता है। राज्य की परिभाषा में शासन शम्द केवल शासक और शासित में भेद ही नहीं बतलाता अपितु उन साधनों की ओर भी संकेत करता है जिन के द्वार लसद शाह 'पअपना 'पाधिपत्य रखता है। शासन द्वारा शासक और शासितों में भेद बतलाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु सन उपायों का भी उल्लेख करना आवश्यक है, जिन के द्वारा राज्य अपनो इच्छा को कार्यान्वित करता है । वे उपाय है-कोश, दुर्ग, और बल । यदि किसी कारण से जनता राजा की माझा का उल्लंघन करती है तो वह उक्त साधनों द्वारा अपनी आज्ञा को पूर्ण करा सकता है। अत: दुर्ग, सेना और कोश राजा की इच्छा को कार्यान्वित करने के साधन है और वे राज्य के आवश्यक अंग है । भारतीय परिभाषा के अनुसार राज्य का अन्तिम अंग मित्र अथवा सुहृद् है। भारतीय मनीषियों ने मित्र को राज्य का आवषयक अंग इसलिए माचा है कि उपयुक्त मित्रों की सहायता पर ही राज्य का अस्तित्व निर्भर है। प्राचीन काल में प्रत्येक राज्य की सुरक्षा शकिसतुलन से ही सम्भब थी। शक्तिसंतुलन से तात्पर्य यह है कि राज्य इस प्रकार अपने मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करे कि शक्तिशाली राज्य को उस पर आक्रमण करने का साहस ही न हो। अत: राज्य की सुरक्षा के हित में मित्र की अत्यन्त आवश्यकता थी। इसलिए आचार्यों ने उस को भी राज्य का एक आवश्यक अंग माना है। भारतीय विचारकों और विशेषकर सोमदेवसूरि द्वारा राज्य को जी परिभाषा दी गयी है, उस से राज्य का स्वरूप भली-भाँति प्रकट हो जाता है । गेटेल तथा अन्य आधुनिक विद्वानों ने राज्य की जो परिभाषाएँ दी है के अपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने राज्य के जो चार तत्त्व बतलाये है, उन में जनसंख्या और भूभाग तो राज्य के तस्व कहे जा सकते है किन्तु सार्वभौमिकता और शासन को उस के तत्त्वों में सम्मिलित नहीं किया जा सकता । क्योंकि वे राज्य की विशेषताएँ है न कि तत्त्व । वे राज्य की परिभाषा के लिए भले ही उपयुक्त हों, परन्तु वे उस के स्वभाव एवं गठन को यथोचित रूप से प्रकट नहीं करते । आवार्य सोमदेव द्वारा दी गयो राज्य की परिभाषा सुस्पष्ट एवं पूर्ण है। राज्य की उत्पत्ति राजनीतिशास्त्र के पाश्चात्य विद्वानों ने राज्य को उत्पत्ति के चार प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख किया है (१) देवी सिद्धान्त, (२) शक्ति सिद्धान्त, ( ३ ) सामाजिक अनुबन्ध का सिद्धान्त तथा ( ४ ) ऐतिहासिक अथवा विकासबादी सिद्धान्त । नीतिधाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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