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________________ धातुओं के अभाव में लोगों का जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता । इस के साथ ही राज्य का संचालन भी असम्भव ही होगा। कोश ही राज्य का प्राण है और उस के अभाव में कोई भी राज्य अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता । प्राकृतिक साधनों तथा जनता पर लगाये गये कर से ही कोश संचित होता है । इस प्रकार आचार्य सोमदेव द्वारा प्रस्तुत राज्य की द्वितीय परिभाषा भी बड़ी वैज्ञानिक एवं उपयोगी है । इस प्रकार माचार्य सोमदेवसूरि द्वारा वर्णित राज्य की परिभाषाओं में उन सब तत्वों का समावेश है जो प्राचीन परम्परा द्वारा सर्वमान्य हैं। भूमि, जनसंख्या, राजा, मनुष्यों द्वारा बसी हुई पृथ्वी ( जनपद ) तथा उस को रक्षा के लिए किये जाने वाले कार्य --अमात्य, कोश, बल ( सेना ), दुर्ग तथा मित्र आदि की व्यवस्था । राज्य के तत्त्व १ आधुनिक राज्यशास्त्रवेताओं ने राज्य के बार मूळ तत्त्व बतलाये है । टेल के अनुसार जनसंख्या, भूभाग, सरकार अथवा शासन और सार्वभौमिकता राज्य के प्रमुख तत्त्व है। राज्य का निर्माण तभी हो सकता है जब ये सभी तत्व विद्यमान हों। इनमें से किसी एक तत्त्व के अभाव में राज्य का निर्माण नहीं हो सकता । गार्नर की परिभाषा में भी उपर्युक्त चार तत्व परिलक्षित होते हैं । किन्तु प्राचीन राज्यशास्त्र प्रणेताओं ने एकमत से राज्य को सात प्रकृतियाँ अथवा मंग माने हैं। इन्हीं तत्वों से मिल कर राजा का स्वनिर्मित होता है। से स्वामी, अमात्य, पुर, राष्ट्र, कोश, दण्ड और सुहृद् है | आचार्य सोमदेव द्वारा प्रस्तुत राज्य की परिभाषा में इन समस्त तत्त्वों का पूर्ण समावेश है। आधुनिक विचारकों द्वारा प्रतिपादित राज्य के चारों तत्वों का भारतीय विचारकों द्वारा वर्णित राज्य के अंगों में पूर्ण समावेश हो जाता है । वास्तव में भारतीय राज्यशास्त्रियों द्वारा दी गयी राज्य की परिभाषा अधिक स्पष्ट एवं पूर्ण है। आधुनिक विद्वानों द्वारा वर्णित तक्ष्यों में से जनसंख्या तथा भूभाग का समादेश जनपद शब्द में हो जाता है। जनपद शब्द न केवल भूभाग को प्रकट करता है वरन उस पर निवास करने वाली जनसंख्या को भी ( १९,५ ) | अतः एक निश्चित भूभाग पर बसी हुई जनसंख्या को भी जनपद कहते हैं | स्वामी अथवा राजा के अन्तर्गत सार्वभौमिकता का समावेश है, क्योंकि जिस भूभाग का वह स्वामी हूँ वह उस में सार्वभौम है । बाह्य अथवा आन्तरिक नियन्त्रण से वह परे हैं। गेटेल को परिभाषा के ९. R. G. Gettell – Political Scienco, P. 20. A state, therefore, may be defined as a community of persons, permanently occupying a definite territory, legally independent of external control, and possessing an organized Government which creates and administers law over all persons and groups within its jurisdiction, 3.F. W. Garner-Introduction to Political Science, P. 41. राज्य
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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