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________________ धर्म अथवा जाति का विचार घातक है, क्योंकि इन के फेर में पड़कर मनुष्य ज्ञान का फल प्राप्त नहीं कर सकता। ___प्राचार्य का स्पष्ट विचार था कि समाज में सभी वर्गों को यथायोग्य स्थान दिया जाये । इस के साथ ही प्राचार्य सोमदेव महान् राष्ट्रवादी भी थे। इसी कारण उन्होंने राजा को यह आदेश दिया कि जहां तक सम्भव हो वह जम्मष पदों पर अपने देश के व्यक्तियों की ही नियुक्ति करे (१०,६)। इस का कारण यही है कि स्वदेशवासो ही राष्ट्रभक्त हो सकता है और विदेशी अधिकारी समय आने पर धोखा भी दे सकता है। सोमदेव आचार की पवित्रता पर बहुत बल देते हैं और उच्च बंश में जन्म लेने मात्र को श्रेष्ठता अथवा पवित्रता का मापदण्ड नहीं मानते। उन का कथन है कि जिस का आचार शुद्ध है, जिस के घर के पात्र निर्मल हैं और जो शरीर की शुद्धि रखने वाला है वह शूद्र मी देव, द्विज और तपस्वियों को सेवा का अधिकारी है ( ७,१२)। इस के साथ ही उन्होंने यह भी सपा नर दिया है. १६.च: के नियमों का पालन करना समो का समान धर्म है ( ७,१३ )। आगे वे कहते है कि सूर्य के दर्शन के समान धर्म सदाचरण हैं परन्तु विशेष अनुछान में विशेष नियम है ( ७,१४ ) अपने आगम में बताया हुआ अनुष्ठान अपना धर्म है ( ७,१५)। इस का तात्पर्य यही है कि साधारण धर्म के नियम, असे श्रुति, क्षमा, दया, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह आदि सभी वर्गों के लिए समान है, किन्तु विशिष्ट धर्म के लिए विशिष्ट नियम है । उन्हें वे हो वरण कर सकते है जो उस के अधिकारी है । प्रत्येक वर्ण की अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए । आचार्य कौटिल्य का भी यही मत है। वे लिखते हैं कि प्रत्येक वर्ण को स्वधर्म का पालन करना चाहिए। यदि व्यक्ति अपना धर्म छोड़कर दूसरे के धर्म के अनुरूप कार्य करने लगेंगे तो इस से वर्णसंकरता उत्पन्न होकर विश्व में अव्यवस्था फैल जायेगी। इस के लिए वे राजा को भी आदेश देते हैं कि राजा देश में कभी वर्णसंकरता का प्रचार न होने दे। वर्णाश्रमधर्म की व्यवस्था के अनुसार यदि संसार कार्य करेगा तो वह कभी खिन्न नहीं होगा, अपितु सर्वदा प्रसन्न रहेगा। आचार्य सोमदेव निर्भीक लेखक श्रे, इसी कारण उन्होंने स्पष्ट रूप से प्रत्येक वर्ण के स्वभाव एवं दोषों पर भी पूर्ण प्रकाश डाला है। १. अश, आ० १,२०॥ २ को अर्थ१.३। धर्म: स्माभिनकाय च । झ्यातिकमे लोकः सकरावित। ३. वहो । तुलारस्वधर्मभान राजा न सभिशा येत। रूधर्म संघानी दिपल चेह च नन्दसि । उन रिश्वशायमः कृतवश्रिमस्थितिः । च्या हि रक्षित' लोकः प्रसीदति न सीदति ।। सोमदेवसूरि और उन का नीतिघाश्यामृत
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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