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________________ परभणी दान-पत्र को चालुक्य वंशावलि में बद्दिग नामक सामन्त का उल्लेख मिलता है । अरिकेसरी द्वितीय के वैमुलवाड ( लैमुलवाड ) स्तम्भ लेख में बढ़ेग नामक व्यक्ति का नामोल्लेख किया गया हैं । आधुनिक खोजों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि चालुक्यवंश के सामन्त बरा बाद के करीमनगर जिले के क्षेत्र में शासन करते थे। ये राष्ट्रकूटों के अधीनस्थ सामन्त ये और इन्हीं के राज्याश्रम में आचार्य सोमदेव ने यशस्तिलक चम्पू तथा नीतिवाक्यामृत की रचना की थो करीमनगर जिले से प्राप्त पार्श्वनाथ की प्रतिमा के मूर्ति लेख से विदित होता हैं कि बद्दिग ने अपने गुरु सोमदेव के लिए एक जैनमन्दिर का निर्माण कराया था । इस बात की पुष्टि परभणी दानपत्र से भी होती है, जिसे बद्दिग के पुत्र अरिकेसरी तृतीय ने ९६६ ई० में प्रसारित किया था। इस दान-पत्र में लिखा है कि अरिकेसरिन तृतीय ने निकटुपूल ( वैमुलवाड ) नामक ग्राम शुभघाम जिनालय की म स्मत एवं व्यय के लिए सोमदेव को दान में दिया था। fear दद्दिगने मुलमाड ( मुलवाड ) में कराया था । इस मन्दिर का निर्माण उस के चालुक्य वंशावली का उल्लेख पम्प के भारत तथा लैमुलवाड दानपत्र दोनों में ही उपलब्ध होता है, किन्तु पम्प के भारत में चालुक्य पंधावलो का पूर्ण विवरण नहीं मिलता । उस के अरिकेसरी द्वितीय तक के राजाओं का ही उल्लेख है । लैमुलवाड दानपत्र में चालुक्य वंशावली का पूर्ण वर्णन उपलब्ध होता है। इस वर्णन के आधार पर बहिग द्वितीय अरिकेसरी द्वितीय का पुत्र निश्चित होता है । पम्प के भारत में अरिकेसरी द्वितीय के पुत्र का नाम नहीं मिलता। २ मुलवाट दानपत्र के वर्णन से स्पष्ट है कि इस के उत्कीर्ण होने के समय अर्थात् माक संवत् ८८८ (९६६ ई० ) में सोमदेव शुभषाम जिनालय के अध्यक्ष थे और उनको अरकेसरी तृतीय का राज्याश्रम प्राप्त था। अरिकेसरी तृतीय नद्दिग द्वितीय का पुत्र था, जिस की राजधानी गंगाधारा में सोमदेव ने यशस्तिलक की रचना समाप्त की । इस प्रकार लेमुलवाड दानपत्र यशस्तिलक की रचना के सात वर्ष पश्चात् उत्कीर्ण हुआ था । इस से पूर्व आचार्य सोमदेव को अरिकेसरी द्वितीय का राज्याश्रम भी प्राप्त हो चुका था । इस बात की पुष्टि श्री नीलकण्ठ शास्त्री के इस कथन से होती है "महान् जैन लेखक सोमदेव ( ९५० ई० ) को राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय के करद वैभुलवाद के पालुक्य राजा अरिकेसरी द्वितीय का राज्याश्रय प्राप्त था और वहीं कन्नड़ भाषा का प्रसिद्ध कवि-पम्य भी रहता था।"३ Madh 3 इस प्रकार सोमदेव अरिकेसरी द्वितीय बद्दिग द्वितीय तथा अरिकेसरी तृतीय Venkattumanayya--The Chalukyas of L(V)etrualvada, 4. Rao op. Cit., P. 216; Venkatramanayya op. Cit., P. 45, 9. KA. Nilkanra Sastri - A History of South India, P, 333, ተረ नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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