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________________ इन तीनों ही चालुक्य नरेशों के राज्याश्रय में रहे और उन का सम्बन्ध इन चालुक्य राजाओं से घनिष्ठ रहा । सोमदेव ने अपने महाकाव्य यशस्तिलक चम्पू की रचना अरिकेसरी द्वितीय के पुत्र बहिन द्वितीय के राज्याश्रम में की और उस के पश्चात् उन्हें अरिकेसरी तृतीय का संरक्षण प्राप्त हुआ, जैसा कि लैमुलवाड दानपत्र से स्पष्ट है । यह बात भी निश्चित है कि नीतिवाक्यामृत यशस्तिलक के बाद की रचना है जैसा कि उसकी ( नीतिवाक्यामृत को ) प्रशस्ति से स्पष्ट है । अतः ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि नीतिवाक्यामृत की रचना भी चालुक्यों के ही संरक्षण में हुई। इस ग्रन्थ की रचना या तो बद्दिग द्वितीय के ही राज्यकाल में हुई अथवा उस के पुत्र अरिकेसरी तृतीय के राज्य काल में हुई । tata की टीका में ग्रन्थ रचना के उद्देश्य एवं समय के विषय में कुछ उल्लेख मिलता है। टीकाकार के कथन का आशय इस प्रकार है - " कान्यकुब्ज के राजा महेन्द्रदेव ने पूर्वाचार्यकृत अर्थशास्त्र की दुर्बोधता से खिन्न होकर ग्रन्थकर्ता को इस सुबोध, सुन्दर एवं लघु नीतिवाक्यामृत की रचना के लिए प्रेरित किया श्रीयुत् गोविन्दराय जैन ने भी यह मत प्रकट किया है कि सोमदेव ने कन्नौज के राजा महेन्द्रपालदेव के आग्रह पर हो नोतिवाषयामृत को रचना की । नीतिवाक्यामृत में अपने माश्रयदाता के नामोल्लेख न करने का कारण बतलाते हुए आप लिखते है कि " सोमदेव अपने ग्रन्थ में अपने आश्रयदाता एवं अन्य रचना की प्रेरणा देनेवाले महाराज महेन्द्रपालदेव का नामोल्लेख कर के उन के पुत्र एवं प्रजा को दुःखी नहीं करना चाहते थे । इसी हेतु सोमदेव ने अपने आश्रयदाता का उल्लेख नीतिवाक्यामृत में नहीं किया।" विद्वान् लेखक का यह भी विचार है कि "भशस्तिलक का परिमार्जन तथा आगे के पांच वासों की रचना भी कन्नौज नरेश के राज्याश्रय में ही हुई । अन्त में श्रीगोविन्दराय जी लिखते हैं कि नीतिवाक्यामृत की रचना महेन्द्रपालदेव के लिए की गयो, किन्तु उनका स्वर्गवास हो जाने के कारण उस की समाप्ति महीपाल के राज्यकाल में हुई। इस प्रकार यशस्तिलक के अन्तिम पाँच माश्वास तथा नीतिवाक्यामृत उत्तरभारत में ही लिखे गये । यह समय महेन्द्रपाल प्रथम और उन के पुत्र महोपाल के शासन का था । सम्भवतः इस समय आचार्य को आयु ५० वर्ष के लगभग हो । " २ atraaraama के टीकाकार तथा श्री गोविन्दराम जैन के मत से हम सहमत नहीं है । यशस्तिलक का रचना काल वि० सं० २०१६ ( ९५९ ई० ) निर्णीत है और नीतिवाक्यामृत की रचना उस के पश्चात् हुई है। ऐसी दशा में नीतिवाक्यामृत का रचना काल महेन्द्रपालदेव से जिन का समय अधिकांश इतिहासकारों ने २. नीतिवाक्यामृत की टीका, पृ०२० ॠ अखिलभूपालमो लिलालिचरणयुगलेन राजवंशावस्था पिपराक्रन पालितकस्य राजश्रीमन्महेन्द्रदेवेन पूर्वाचार्य कृतार्थ शास्त्रदुरनबोधग्रन्थगौरव खिन्नमानसेन या मृत रचनञ्च प्रवर्तित २. श्रीगोविन्दराजेन - जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १४, किरण २, पृ० १४-२६ । सोमदेवसूरि और उनका नीतिवाक्यामृत कर्ण कुब्जेन महाललितनोति १९
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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