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रचना राष्ट्रकूट सम्राट् की राजधानी मान्यलेट में नहीं को, अपितु उन के अधीनस्थ महा सामन्त बद्दिग की राजधानी गंगाधारा में की थी । चालुक्यवंश के राजा अरिकेसरी की वंशावली का उल्लेख कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध कवि पम्प ने अपने ग्रन्थ भारत ( विक्रमार्जुन विजय ) में किया है। पम्प अरिकेसरी का समकालीन था और उसे बालुवयमरेश का संरक्षण प्राप्त था । पम्प की रचनाओं से प्रभावित होकर बरिकेसरी ने धर्मपुर नामक ग्राम उस को दानस्वरूप दिया था । पम्प ने अरिषेसरी की वंशावली का उल्लेख इस प्रकार किया है— युद्धमल्ल, अरिकेसरी, नारसिंह, युद्धमल्ल, बद्दिग, युद्धमल्ल, नारसिंह, अरिकेसरी ।
उक्त ग्रन्थ शकसंवत् ८६३ ( विक्रम संवत् ९९८ ) में समाप्त हुआ, अर्थात् यह यशस्तिलक से कोई १८ वर्ष पूर्व रचा जा का था। इस की रचना के समय अरिंकेसरी राज्य करता था, तब उस के १८ वर्ष पश्चात् यशस्तिलक की रचना के समय उसका पुत्र राज्य करता होगा, यह सर्वथा ठीक जंचता है, ऐसा श्री नाथूराम प्रेमी का विचार है ।
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हैदराबाद स्थित परभणी नामक स्थान से प्राप्त ताम्रपत्र में भी राष्ट्रकूट सम्राटों के अधीनस्थ चालुक्य वंशीय सामन्त राजाओं की वंशावली का उल्लेख मिलता है। यह ताम्रपत्र ९६६ ६० का है । इस में दी हुई चालुक्य वंशावली पम्प के भारत में वर्णित वंशावली से बहुत कुछ मिलती है जो इस प्रकार है
युद्धमल्ल प्रथम — अरिकेसरी प्रथम - नरसिंह प्रथम ( + मद्रदेव ) - पुद्धमल्ल - द्वितीय-गि प्रथम (जिस ने भीम को परास्त किया तथा बन्दी बनाया ) - युद्ध - मल्ल तृतीय - नरसिंह द्वितीय-अरिकेसरी द्वितीय ( जिस का विवाह लोकाभित्रका नाम की राष्ट्रकूट वंश की राजकुमारी से हुआ था ) भद्रदेव अरिकेसरी तृतीय- चद्दिग और अरिकेसरी चतुर्थ |
परभणी दान-पत्र से प्रकट होता है कि अरिकेसरिन द्वितीय के पश्चात् उस का पुत्र भद्रदेव ( बद्दिग द्वितीय ) सिंहासनारूत हुआ । इस में यह भी उल्लेख मिळता हैं कि अरिकेसरी तृतीय के पिता का नाम बगि था । यदास्तिक चम्पू को पद्यप्रदास्ति में सोमदेव ने स्वयं लिखा है कि उन्होंने अपने चम्मू महाकाव्य की रचना अरिकेसरिन द्वितीय के ज्येष्ठ पुत्र वद्यगराज ( बद्दिग ) की राजधानी गंगाधारा में की।
3. KA. Nilkanta Sastri - A History of South India, P. 333.
२. पं० नानुराम प्रेमी नीतिवामृत की भूमिका, ५०२०३
३. हु ताम्रपत्र मुलानपत्र के नाम से प्रकाशित हुआ है।
४. श्री के. के हुन्छी की कार
ही है।
३. मुलान२-१४
का ही संस्कृत रूपान्तर है। उन का यह कथन
अस्त्वाविध्यभावर्शश्चाक्यस्य यः मकासर नैशाल्पो (१)मास्यस्याशंगाभ्यन्तरसिद्धिसर्व्वगमस्यस्तोदकधारन्दत्तः ॥
सोमदेवसूरि और उन का नीतिवाक्यामृत
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