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________________ ३१. अव्यायामशीलों में पानि , उत्साह और गोरा नहों से 1 सकता है (२५, १९)। ३२. बिना भूख के खाया हुदा अमृत भी विष हो जाता है (२५, ३०)। ३३, आत सभी धर्म बुद्धि वाले हो जाते है (२६, ५)। ३४. वह मनुष्य नीरोग है जो स्वयं धर्म के लिए चेष्टा करता है (२६, ६)। ३५. भय स्थानों पर विषाद करना उचित नहीं अपितु पर्य का अवलम्बन अपेक्षित है (२६, १०)। ३६. उस को लक्ष्मी अभिमुखी नहीं होती जो प्राप्त हुए धन से सन्तुष्ट हो जाता ३७. वह सर्वदा दुःखी रहता है जो मूलधन को वृद्धि न कर के व्यय करता है ३८. सर्वत्र सन्देह करने वाले को कार्य सिद्धि नहीं होती (२६, ५१)। ३९. वह जाति से अन्धा है जो परलोक की चिन्ता नहीं करता (२६, ५६) । ४०. स्वयं गुणरहित वस्तु पक्षपात से गुण वाली नहीं हो जाती (२८, ४७) । ४१. नायकहीन अथवा बहुत नामकों वाली सभा में कभी प्रवेश न करे (२९, १०)। ४२. विश्वासघात से बढ़कर कोई पाप नहीं है (३०, ८३) 1 ४३, गृहणी को घर कहते है, दीवार और चटाइयों के समूह को नहीं ४४. तृण से भी व्यक्ति का प्रयोजन सिद्ध होता है, फिर मनुष्य का तो कहना हो क्या (३२, २८)। ४५. अतिपरिचय किसी को अवज्ञा नहीं करता (३२, ४३)। ४६. अप्रास अर्थ में सभी त्यागी हो जाते हैं (३२, ७१)। ४७. पुण्यशील पुरुष को कहीं भो आपत्ति नहीं (३२, ३८)। ४८, देव के अनुकूल होने पर भी उधमरहित व्यक्ति का भद्र नहीं (२९,९)। ४९. वही तीर्थयात्रा है जिस में अकृत्य से निवृत्ति हो (२७, ५३) । ५०. दरिद्रता से बढ़कर मनुष्य के लिए कोई अन्य लांछन नहीं है जिस के साथ समस्त गुण निष्फल हो जाते हैं (२७, ४५)। ५१. वह बुरा देश है जहाँ अपनी वृत्ति नहीं (२७, ८)। ५२. वह कुत्सित बन्धु है जो संकट में सहायता नहीं करता (२७, ९)। ५३. तीन पाप तत्काल फल देते है-स्वामी द्रोह, स्त्रोवध और बालयध (२७, ६५)। ५४. अपात्रों में धन का व्यय राख में हवन के समान है (१, ११)। निश्कर्ष १८९
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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