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________________ +: . रा १ को पवित्र करता है वह पुत्र है (५, ११)। ८. अपराधियों के प्रति क्षमा धारण करना साधुओं का भूषण है, राजाओं का ___ का नहीं (६, ३७) । ९. सुगन्धिरहित भी षागा क्या सुमनों के संयोग से देवता के शीश पर नहीं चढ़ता (१०,२)। १०. महापुरुषों से प्रतिष्ठित परथर भी देवता बन जाता है, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या (१०, ३)। ११. विष भक्षण के समान दुराचरण समस्त गुणों को नष्ट कर देता है (१०,७)। १२. वह महान् है जो विपत्ति में धैर्य धारण करता है (१०,१३३)। १३. किसी भी अपने अनुकूल को प्रतिकूल न बनाये (१०, १४६) । १४. घाणी की कटुता शस्त्रपात से भी बढ़ कर है (१६,२७) । १५. बिमा विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए (१५, १)। १६. कौन धनहीन लघु नहीं हो जाता (१७, ५५) । १७. शत्रु के भी घर आने पर आदर करना चाहिए, महापुरुष के आने पर ___सो कहना ही क्या (२७, २६)। १८. वही तीर्थ हैं जिन में अधर्म का आचरण नहीं होता है ( २७, ५२)। १९. उस पुरुष को धिक्कार है जिस में मात्मशक्ति के अनुसार कोप और . प्रसन्नता नहीं (६, ३८)। २०. खल की मैत्री अन्त में विपत्तिदायक होती है (६, ४४) । २१. अप्रिय औषधि भी पो ली जाती है (८, २५)। २२. सर्प से काटी हुई अपनी अंगुली भी काट दी जाती है (८, २६) । २३. वह पुत्र क्या कुलीन है जो माता-पिता पर शूरता प्रकट करता है (११, २१)। २४. पिता के समान गुरु की सेवा करनी चाहिए (११, २४) । २५. मनुष्यों का वैभव वह है जो दूसरों का उपभोग्य होता है (११, ५२)। २६. उपकार कर के प्रकट करना वैर करने के समान है (११, ४७)। २७. वह मनुष्य विचारज्ञ है जो प्रत्यक्ष से उपलब्ध को भी अच्छी तरह परीक्षा कर के अनुष्ठान करता है (१५, ६)। २८. कुशल बुद्धिवाले पुरुषों को प्राणों के कंठगत आ जाने पर भी अशुभ कर्म नहीं करना चाहिए (१८, ३७)। २९. माता-पिता का मन से भी अपमान करने से अभिमुख लक्ष्मी भी विमुख हो जाती है (२४, ७६)। ३०. बल के अतिक्रम से व्यायाम किस आपत्ति को उत्पन्न नहीं करता (२५, १८)। नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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