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________________ तथा अन्य प्राचीन आचार्यों ने भी पाड्गुण्य मन्त्र के यही छह गुण बतलाये है। सोमदेव ने इन छह गुणों का विस्तृत विवेचन नीलिवाक्यात में किया है। आचार्य ने इस के लिए एक पृथक् समुद्देश (पागुण्य समुद्देश ) को रचना की है। सोमदेव के अनुसार इन छह गुणों का विवेचन निम्नलिखित हे.. १. सन्धि-जब विजिगीष अग्नी दुर्बलता के कारण शक्तिशाली राज्य से धनादि देकर उस से मैत्री करता है, उसे सन्धि कहते है (२९, ४४) । आचार्य कौटिल्य ने सन्धि की परिभाषा करते हुए लिखा है कि दो राजाओं के बीच भूमि, कोश तथा दण्ड (सेना आदि) प्रदान करने की शर्त पर किये गये प्रणबन्धन को सन्धि कहते हैं। आचार्य सामदेव ने उन परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है जिन में अस्थि गुण का आश्रय लेना चाहिए । जब विजिगीषु शक्तिशाली हो तो उसे शत्रु राजा से आर्थिक दण्ड देकर सन्धि कर लेनी चाहिए (२१, ५१)। यदि विजिगीषु शत्रु द्वारा भविष्य में अपनी कुशलता का निश्चय करे कि न वह विजिगीषु को नष्ट करेगा और न विजिगीषु शत्रु को, तब उस के साथ विग्रह न कर मित्रता ही करनी चाहिए (२९,५३)। जब कोई सीमाधिपति शक्तिशाली हो और वह विजिगीषु की भूमि पर अधिकार करना चाहता हो तो उसे भूमि से उत्पन्न होने वाली घान्य देकर सन्धि कर लेनी चाहिए। उसे भूमि साह देनी साहिए।२:,६५) सामान भूमि से उत्पन्न होने वाली धान्य विनश्वर होने के कारण शत्रु के पुत्र-पौत्रादि द्वारा भोगी नहीं जा सकती, किन्तु भूमि एक बार हाथ से निकल जाने पर पुनः प्राप्त नहीं होती (२९,६६) । इस के अतिरिक्त विजिगोषु द्वारा दी गयी भूमि को प्राप्त करने वाला सीमाधिपति शक्तिशाली होकर फिर उसे नहीं छोड़ता । शक्तिशाली बीमाधिपति का दुर्बल राजा पहले ही धन आदि देकर अपना मित्र बना ले, अन्नथा उस के द्वारा विजिगीषु का सम्पूर्ण धन नष्ट कर दिया जाता है और उस के राष्ट्र का विनाश हो जाता है। जब विजिगीषु स्वर्य दुर्बल हो और शत्रु विशेष पराक्रमो १ महान् शक्तिशाली हो तो उस से सन्धि कर लेनी चाहिए । प्रबल सैनिकों वाले शत्रु के साथ युस न कर सरित्र ही करना उचित है। समान शक्ति वाले राष्ट्रों को भी आपस में कभी युद्ध नहीं करना चाहिए। यदि दा समान शक्ति वाले राज्यों में युद्ध मिल जाता है तो वे दोनों ही नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार हीन शक्ति वाला विजिगीषु भी प्रबल दाक्ति वाले शत्रु स युद्ध कर के विनाश को प्राप्त होता है (३०, ६८-६५)। कौटिल्य का भी यही विचार है कि उपर्युक्त परि. स्थितियों में सन्धि के अतिरिक्त और कोई उपाय है ही नहीं। कौटिल्य ने अनेक प्रकार की सन्धियों का उल्लेख अर्थशास्त्र में किया है।' १. कौ० अर्थ०७१। २. वही, ७,१। सत्र पणबन्धसलियः । १.वही,७१। ४. वही, ७,३। गीशिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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