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________________ भेजनीति तीसरा उपाय भेव है। सोमदेव ने इस की परिभाषा करते हुए लिखा है कि विजिगीषु अपने सेनानायक, तीक्ष्ण व अन्य गुप्तचर तथा दोनों ओर से वेतन पाने वाले गुप्तचरों द्वारा शत्रु की सेना में परस्पर एक-दूसरे के प्रति सन्देह वा तिरस्कार उत्पन्न करा के भेद झालने को भेदनीति कहते हैं । २९,७४) । दण्डनीति शत्रु का वध करना, उसे पीड़ित करना, उस के धन का अपहरण करना आदि दण्डनीति के अन्तर्गत आता है ( २९, ७५ }। विजिगीषु को अपने मनोरथ को सिद्धि के लिए अन्य चारों उपायों का प्रयोग यथा-अवसर करना चाहिए। जिस समय जैसी नीति की आवश्यकता हो वैसी ही नोति का प्रयोग करना चाहिए । इन नीतियों के सचित प्रयोग से विजय निश्चित हो जाती है। किस पात्रु से युद्ध किया जाये इस सम्बन्ध में भी आचार्य सोमदेव में उपयोगी विचार व्यक्त किये है-जी इस प्रकार है-"जो जार से उत्पन्न हो अथवा जिस को देश का कोई भी शान ही न हो, लोभी, दुष्ट-हृदय, भुक्त, जिस से प्रजा कब गयो हो, अन्यायी, कुमार्गगामी, द्युत एवं मदिरापान अादि व्यसनों में फंसा हुआ मित्र, अमात्य, सामन्त व सेनापति बादि राजकीय कर्मचारो जिस के विरुद्ध हो" इस प्रकार के शत्रुभूत राजा पर विजिगीषु को आक्रमण करना चाहिए ( २९, ३०)। विजिगीषु को आश्रयहीन व दुर्बल आश्रय वाले शत्रु से युद्ध कर के उसे नष्ट कर देना चाहिए। यदि कारणवश शय से सन्धि हो जाये वो भी विजिगीषु भविष्य के लिए अपना मार्ग निष्कण्टक बनाने के लिए उम्र का समस्त घन छीन ले या उसे इस प्रकार दलित व दुर्वल बना दे जिस से वह भविष्य में उस का विरोध करने का साहस हो न कर सके (२९, ३१-३२)। जिस के साथ पहले धनी विजिगीषु धारा बैर-विरोध उत्पन्न किया गया है सथा जो स्वयं आकर विजिगीषु से वैर-विरोष करता है । ये दोनों उस के कृत्रिम शत्रु हैं । यदि वे शक्तिहीन है तो इन के साथ विजिगीषु को युद्ध करना पाहिए अन्यथा शक्तिशाली होने की स्थिति में उन्हें सामनीति से ही अपने अनुकुल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए ( २९, ३४)। पाडगुण्य मन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को विनियमित करने वाला यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। मण्डल के अन्तर्गत विजिगीषु को अपने सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार इन छह गुणों अथवा नीतियों का प्रयोग करना चाहिए ! इन के प्रयोग से राज्यों के पारस्परिक सम्बन्ध निश्चित होते हैं। सोमदेव के अनुसार ये छह गुण इस प्रकार है-१. सन्धि, २. निग्रह, ३. यान, ४. आसन, ५. संथय तथा ६. दुधीभाव ( २९, ४३ : कौटिल्य अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ॥३
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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