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२. विग्रह - युद्ध करने को विग्रह कहते हैं। कौटिल्य के अनुसार पात्र के प्रति किये गये द्रोह तथा अपकार को विग्रह कहा जाता है । क्षम के अनुसार इस गुण का प्रयोग तभी करना चाहिए जब विजिगीषु शक्तिशाली हो 1 सोमदेव ने उन परिस्थितियों का भी वर्णन किया है जिन में विग्रहगण विजिगीषु के लिए हितकारक हो सकता है । यदि उन परिस्थितियों के विरुद्ध इस गुण का प्रयोग किया जाता है तो विजिगीषु का विनाश निश्चय रूप से होता है। इन परिस्थितियों का वर्णन सोमदेव ने इस प्रकार क्रिया है- यदि विजिगीषु शत्रु राजा से सैनिक व कोा शक्ति में अधिक है और उस की सेना में क्षोभ नहीं है तब उसे शत्रु राजा से युद्ध छेड़ देना चाहिए ( २९,५२ ) । विजिगीषु यदि सर्वगुण सम्पन्न ( प्रचुर सैन्य व कोश युक्त ) है और उस का राज्य निष्कण्टक है, तो उसे शत्रु के साथ युद्ध करना चाहिए (२९,५४) । इस का अभिप्राय यही कि विजिगीषु को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि युद्ध करने से उस के राज्य में तो किसी प्रकार की हानि नहीं होगी । शक्तिशाली को दोन शक्ति वाले के साथ युद्ध करना चाहिए। सोमदेव का यह भी कथन है कि एक बार जिस शत्रु को पूर्ण रूप से परास्त कर दिया जाये उस पर आक्रमण नहीं करना चाहिए, अन्यथा पीड़ित किया गया शत्रु अपने विनाश की शंका से पुनः पराक्रम शक्ति का प्रयोग करता है (३०,६६) । शत्रु के मधुर वचनों पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह कपटपूर्ण व्यवहार द्वारा विजिगीषु से मुक्ति प्राप्त कर के फिर अवसर पाकर उसे नष्ट कर देता हूँ ( १०, १४१) ।
३. यान — सोमदेव के अनुसार विजिगीषु द्वारा शत्रु पर आक्रमण किये जाने को यान कहते हैं । अथवा शत्रु को अपने से अधिक शक्तिशाली समझकर अन्यत्र प्रस्थान को भी यान कहते हैं ( २९, ४६ ) । जब विजयाभिलाषी राजा ऐसा समझ लेता है कि शत्रु के कार्यों का विध्वंश उस पर आक्रमण कर के हो सम्भव है और उस ने स्वयं अपने राज्य की रक्षा का प्रबन्ध कर लिया है तो ऐसी परिस्थिति में उस राजा को यानगुण का आश्रय लेना होगा । सोमदेव ने यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि विजिगीषु को दान देश पर अभियान तभी करना चाहिए जब कि अपना देश पूर्णरूपेण सुरक्षित हो। यदि अपने देश में सुरक्षा एवं व्यवस्था का अभाव है तो उसे शत्रु पर कदापि आक्रमण करने के लिए प्रस्थान नहीं करना चाहिए। अन्यथा उस के गमन करते ही उस के देश में अव्यवस्था फैल जायेंगी, अथदा उम्र के राज्य पर अन्य कोई शत्रु आक्रमण कर देगा । जिस का सामना करना बहुत कठिन हो जायेगा ।
४. आसन - सोमदेव ने आसन गुण का अर्थ इस प्रकार किया है - " सबल शत्रु को आक्रमण करने के लिए तत्पर देखकर उस की उपेक्षा करना ( उस स्थान
१. कौ० अ० ७.१ ५ अपकारी विग्रहः २, वहीं. ७, ३ ।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
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