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________________ . कौटिल्य ने भी मित्र के यही भेद बतलाये हैं।' ६. पाणिग्राह-विजिगीषु के शत्रु के साथ युद्ध के लिए प्रस्थान करने पर बाद में जो क्रुद्ध होकर उस के देश को नष्ट-भ्रष्ट कर टालता है उसे सोमदेव ने पारिणग्राह कहा है (२९, २६)। ७. आक्रन्द-जो पाणिग्राह से बिलकुल विपरीत आचरण करहा है अर्थात विजिगीषु को विजय यात्रा में जो हर प्रकार से सहायता पहुँचाता है उसे आक्रद कहते ८. आसार जो पाणिग्राह का विरोधी और आनन्द से मित्रता रखता है यह आसार है (२९, २८)। कौटिल्य ने इसे आक्रन्दासार कहा है। ९. अन्तर्धि-शत्रु राजा तथा विजिगीषु राजा इन दोनों के देश में जिस की जीविका है तथा जो पर्वत एवं अटवी में रहता है उसे सोमदेव ने अन्तधि बताया है (२९, २९) । शत्रु राज्य, मध्यम राज्य एवं उदासीन राज्य को राज्य मण्डल का घटक कहा जाता है । कारण से ८ कि संस- ९ का मण्डल बताया है । कौटिल्य के मण्डल में १२ राज्यों का उल्लेख मिलता है- विजिगीषु, २ अरि, ३ मित्र, ४ अरिमित्र, ५ मित्र-मित्र, ६ अरिमित्र-मित्र, ७ पाठिणग्राह, ८ आनन्द, ९ पाणिग्राह सार, १० आक्रन्दासार, ११ मध्यम तथा १२ उदासीन 1 मनु के अनुसार विजिगीषु शत्रु, मध्यम, अरि, उदासीन, ये मण्डल सिद्धान्त के मूल अथवा आधार है। यधपि सोमदेव ने मण्डल के ९ राज्यों के नामों का ही उल्लेख किया है जो कि कौटिल्य के द्वारा वर्णित मण्डल के राज्यों से साम्य रखते है। किन्तु जिस प्रकार कौटिल्य ने अरि-मित्र, मित्र-मित्र, एवं अरि मित्र-मित्र को इस राज्य मण्डल में सम्मिलित कर लिया है। उसी प्रकार सोमदेव द्वारा प्रतिपादित मण्डल के १ राज्यों में इम तीन राज्यों को सम्मिलित कर लेने पर 'सन के राज्य मण्डल में भी १२ राज्य हो जाते हैं 1 आचार्य सोमदेव इन वा पृथक् नामोल्लेख करना उचित नहीं समझा। इसी कारण उन्होंने राज्य मण्डल में प्रमुख ९ २१व्यों का ही वन किया है। कुछ विद्वानों ने मण्डल के तत्वों के साथ राज्य की प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों का भी उल्लेख किया है। जिस के बाधार पर मण्डल में १२, २६, ५४, ७२, १०८ प्रकृतियों का उल्लेख मिलता है । इस सम्बाध में कामन्दक का कथन सर्वथा उचित हो है कि मण्डल के तत्त्वों के सम्बन्ध में विभिन्न मत है किन्तु १२ राज्यों का मण्डल १. कौ० वर्थ ० २, २७.२८ । २. वही, ६,२। ३. वहो। ४. मनु०७, १९५५-५६ । नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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