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________________ लिखते हैं कि स्वयं अपनी सेना का निरीक्षण न करना, उन के देने योग्य वेतन में से कुछ भाग हड़प लेना, भाजीविका के योग्य वेतन को यथा समय न देकर विलम्ब से देना, उन्हें विपत्ति ग्रस्त देखकर भी सहायता म देना और विशेष अवसरों (पुत्रोत्पत्ति, विवाह व त्योहार आदि खुशी के अवसरों पर उन्हें घनादि से सम्मानित न करना आदि सेना के राजा के विरुद्ध होने के कारण है (२२, १५)। राजा को समस्त प्रयत्नों से अपनी सेना को सन्तुष्ट रखना चाहिए । जो राजा आलस्य वश स्वयं अपनो सेना की देख-रेख न कर के इस कार्य को अन्य व्यक्तियों से कराता है वह निःसन्देह धन और सैन्य से रहित हो जाता है (२२, १८)। नैतिक व्यक्ति को कौन-कौन से कार्य स्वयं करने चाहिए इस बात पर भो सोमदेव ने प्रकाश डाला है। ये लिखते हैं कि नैतिक व्यक्ति को निश्चय पूर्वक सेवकों का पालन-पोषण, स्वामी को सेवा, धार्मिक कार्यों का अनुष्ठान और पुत्रोत्पति ये चार कार्य अन्य पुरुष से न करा कर स्वयं ही करने चाहिए (२२, १९)। सेवकों का वेतन तथा उन के कर्तव्य स्वामी को अपने आश्रित सेवकों को इतना घन अवश्य देना चाहिए जिस से वे सन्तुष्ट रह सकें (२२, २०)। यदि राजा सेवकों को आर्थिक कष्ट पहुँचासा है तो निश्चय रूप से उस की हानि होती है। राजा के इस कर्तव्य के साथ ही आचार्य ने सेवकों के कर्तव्य को ओर भी संकेत किया है। वे लिखते है कि यदि उन को अपने स्थामी से पर्याम धन प्राप्त न मी हो तो भी उन्हें स्वामी से कभी द्रोह नहीं करना पाहिए (२२, २१)। कृपण राजा की हानि जो राजा कृपण होता है तथा उचित-अनुचित का विचार नहीं करता उस को हमेशा कष्ट भोगना पड़ता है। जो स्वामी आवश्यकता पड़ने पर अपने सेवकों को सहायता नहीं करता तथा जो सेवकों के गुण-दोषों को भली-भांति परख नहीं करता और सब के साथ एक सा ही व्यवहार करता है, ऐसे कृषण एवं विवेकहीन राजा के लिए कोई भी सैनिक अथवा सेवक युद्धभूमि में अपने प्राणों की बलि देने को तैयार नहीं हो सकता (२२, २४५५)। अतः राजा को संकट काल में उदारतापूर्वक अपने सेवकों की सहायता धनादि देकर करनी चाहिए। इस के साथ ही अपने सेवकों के गुण-दोषों को भी बुद्धिमत्तापूर्वक परखना चाहिए । जो गुणी है तथा राजा के शुभचिन्तक है उनको सम्मान प्रदान कर के उत्साहित करना चाहिए तथा जो दोषी हैं और उस के शुभचिन्तक नहीं हैं, उन्हें दण्डित करना चाहिए। ऐसा करने से स्वामिभक सेवकों का निर्माण होगा जो कि संकट काल में अपना सर्वस्व अर्पण कर के भी राजा की रक्षा में तत्पर रहेंगे। १५८ नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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