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________________ ' कोप राजशास्त्र के प्रणेताओं ने राज्योगों में कोष को बहुत महत्त्व दिया है। प्राचार्य सोमदेव लिखते हैं कि कोष हो राजाओं का प्राण है (२१, ५)। संचित कोष संकटकाल में राष्ट्र की करता है। वहीं राजा राष्ट्र की सुरक्षित रख सकता है जिस के पास विशाल कोष है । संचित कोष बाला राना ही ग्रुद्ध को दीर्घकाल तक चलाने में समर्थ हो सकता है । दुर्ग में स्थित होकर प्रतिरोधात्मक युद्ध को चलाने के लिए भो सुदृाह कोष को आवश्यकता होती है । इसलिए कोष को क्षीण होने से बचाने तथा संचित कोष को वृद्धि करने के लिए प्राचीन आचार्यों ने अनेक उपाय बताये हैं। राजनीति के अन्धों में अपने महत्त्व के कारण ही कोष एक स्वतन्त्र विषय रहा है । बाचार्य सोमदेव ने भी अन्य आचार्यों की भांति इस विषय पर भी प्रकाश डाला है । नीतिवाक्यामृत में कोष' समुहमा कोष सम्बन्धी बातों का दिग्दर्शन कराता है। कोष की परिभाषा आचार्य सोमदेव ने कोष समुद्देश के प्रारम्भ में ही कोष की परिभाषा दी है। उन के अनुसार जो विपत्ति और सम्पत्ति के समय राजा के तन्त्र की वृद्धि करता है और उस को सुसंगठित करने के लिए धन की वृद्धि करता है वह कोष है (२१,१)। धनाढय पुरुष अथवा राजा को धर्म और धन की रक्षा के लिए तथा सेवकों के पालनपोषण के लिए कोष की रक्षा करनी चाहिए । कोष को उत्पत्ति राम के साथ ही हुई है। जैसा कि महाभारत के इस वर्णन.से प्रकट होता है। प्रजा ने मन के कोप के लिए पशु और हिरण्य का पचासर्वा भाग तथा धान्य का दसवाँ भाग देना स्वीकार किया। कोष का महत्त्व समस्त श्राधामों ने कोष का महत्त्व स्वीकार किया है। आचार्य सोमदेव का पूर्वोक्त कथन-कोष ही राजाओं का प्राण है-इस के महान् महत्व का घोतक है। आचार्य सोमदेव आगे लिखते हैं कि जो राजा कौड़ी-कौड़ी कर के अपने कोष की वृद्धि नहीं करता उस का भविष्य में कल्याण नहीं होता (२१, ४) । १. महा० शान्ति.६७, २३-२४ । कोष
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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