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________________ माचार्य कौटिल्य कोष' का महत्त्व बतलाते हुए लिखते हैं कि सम का मूल' कोष ही है अतः राजा को सर्वप्रथम कोष को सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।' महाभारत में भी ऐसा वर्णन आता है कि राजा को कोप को सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए । क्योंकि राजा लोग कोष के ही अधीन हैं तथा राज्य की उन्नति भी कोष पर हो आधारित है।' कामन्दक ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति से मही सुना जाता है कि राजा कोष के आश्रित है । कोष के इस महत्व के कारण हो मनु ने लिखा है कि सरकार तथा कोप का निरीक्षण राजा स्वयं ही करे, क्योंकि इन का सम्बन्ध रागा दी है। याज्ञवल्कर राजा को यह आदेश देते है कि उसे प्रतिदिन राज्य की आय-व्यय का स्वयं निरीक्षण करना चाहिए तथा इस विभाग के कर्मचारियों द्वारा संगृहीत स्वर्ण एवं धनराशि को कोष में जमा करना चाहिए ।' आचार्य सोमदेव का कथन है कि राज्य की जन्मति कोष से होती है न कि राजा के शरीर से (२१, ७)। भागे वे लिखते हैं कि जिस के पास कोष है वही युद्ध में विजयो होला है (२१, ८)। इस प्रकार आचार्य कोष को राज्य की सर्वांगीण उन्नति एवं उस की सुरक्षा का अमोध साधन मानते हैं। कोप पाले राजा को सेवक और सैन्य सब कुछ सुलम हो सकते है, परन्तु कोष विहीन राजा को कोई भी वस्तु सुलभ नहीं होती । कोषहीन राजा नाममात्र का हो राजा है । क्षीण कोष वाला राजा अपनी प्रजा पर धन-संग्रह के लिए अनेक प्रकार के अत्याचार करता है, जिस के परिणामस्वरूप प्रजा दुःखी होती है और वह उस के अत्याचार से तंग आकर उस देश को छोड़कर अन्यत्र चली जाती है। इस से राजा जनशक्ति विहीन हो आता है. (२१, ६)। उत्तम कोष इस बात से सभी विद्वान सहमत हैं कि राज्य की प्रतिष्ठा, रक्षा एवं विकास के लिए कोष की परम आवश्यकता है। इस के साथ ही आपार्यों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कौन-सा कोष उत्तम है। आचार्य सोमदेव उत्तम कोष का वर्णन करते हुए लिखते है कि जिस में स्वर्ण, रजत का प्राबल्य हो और व्यावहारिक नाणकों ( प्रचलित मुद्राओं) की अधिकता हो तथा जो आपत्काल में बहुत व्यय करने में समर्थ हो वह उत्तम कोष है (२१, २)। १, कौ० अर्थ०२, ८ । कोशमूलाः कोशपूर्वः सबारम्भाः । तस्मान कोशमक्षेत। २. महा० शान्ति० ११६, १६।। ३. कामन्दक-१३.३३। कोशमुलो हि राजेति प्रसाद साधलौकिकः। ५. मनु० ७,६५। • माज्ञः १, ३१७-२८ । नीतिवास्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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