SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. राजपूतकाल में भी दुर्गों का महत्त्व कम नहीं हुआ। राजस्थान अपने पर्वतीय दुर्गों के लिए प्रसिद्ध है। आगरा तथा दिल्ली के दुर्ग इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मुगलकाल में भी दुर्गों का महत्त्व बना रहा। ग्वालियर का दुर्ग आज भी उस काल के पर्वतीय 'दुर्गों की स्मृति दिलाता है। राजस्थान में पर्वतीय दुर्गों का जाल सा बिछा हुआ था। किन्तु आज उन दुर्गों के ध्वंसावशेष ही दृष्टिगोचर होते हैं। महाराष्ट्र देश भी दुर्गो' का देश रहा है। महाराजा शिवाजी इन्हीं दुर्गों पर अधिकार करने के उपरान्त अपनी राजनीति में सफल हुए । सिंहगढ़, रोहिन्दा, चकन, तोणं, पुरन्दर, सूपा, बारामनी, जावली, कल्याण तथा भिनन्दी आदि प्रसिद्ध दक्षिण भारत के दुर्गो पर आक्रमण कर के तथा अपनी नोसिकुशलता से सब को अपने अधिकार में कर लिया। इन दुगो पर अधिकार हो जाने के कारण हो शिवाजी ने अपने शत्रुओं को पराजित किया और अंगरेजों के दांत खट्टे कर दिये । इस के अतिरिक्त महाराष्ट्र प्रदेश जो कि एक पहाड़ी प्रदेश है, उस की पहाड़ियों पर मराठों ने अनेक दुर्गों का निर्माण किया ६ जिन र अधिकार का नया भारत में अंगरेजों के आगमन से दुर्गरचना का पराभव होने लगा, क्योंकि अब इन दुर्गों का महत्त्व नवीन अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण के कारण उवना न रहा जितना कि धनुष, भाला, तलवार थाथि शस्त्रों के युग में था। इन नवीन अस्त्र-शस्त्रों ने सीमा की सुरक्षा एवं देश-रक्षा का दायित्व धारण कर लिया और देश की सोमाओं पर इन अस्त्रों को स्थापित कर के सारे देश को ही दुर्ग के रूप में परिणत करने को नवीन प्रणाली का सूत्रपात हुमा ।। किन्तु आधुनिक युग में दुर्ग विषयक भावना वर्तमान राजनीतिज्ञों के मस्तिष्क से पूर्णरूपेण बिलुप्त नहीं हुई है। समस्त राष्ट्र को दुर्ग के रूप में परिणत करने की नबीन भावना यत्र-तत्र दृष्टियोचर होती है। यह माना कि स्थल के आक्रमणों से सुरक्षा के लिए दुर्गों की उतनी आवश्यकता अब नहीं रह गयी है जितनी कि प्राचीन काल में थी। किन्तु आकाश में वायुयानों द्वारा आक्रमण से रक्षा के लिए प्रमुख देशों में योजनाबद्ध भूगह-रचना की योजना विस्तार पर है। देश-काल के अनुसार विधि और ध्यवस्था में परिवर्तन अवश्य हो गया है, किन्तु फिर भी मानव के मस्तिष्क में दुर्ग की भावना अभी तक पूर्ववत् ही निहित है। दुर्ग का महत्त्व युद्ध-काल में ही अधिक होता है । रक्षात्मक युद्ध इन दुर्गों के द्वारा बड़ी सुगमता से संचालित किया जा सकता है क्योंकि दुर्ग की अल्पशक्ति ही महान् बाह्य शक्ति का सामना करने में समर्थ होती है जैसा कि मनु का विचार है। १६ नीतिघाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy