SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राप्त हुए धन को राजकोष में जमा नहीं करता, ( 4 ) द्रव्यविनिमम-जो राजकीय बहुमूल्य द्रव्य अन्य मुल्य में निकाल लेता है अर्थात् जो बहुमल्य मुद्राओं को स्वयं ग्रहण कर के और उन के बदले में अल्प भूल्य वाली मुद्राएं राज्य कोष में जमा कर देता है । सारांश यह है कि जो राजा उक्त दोषों से युक्त व्यक्ति को अमात्य बनाता है उस का राज्य नष्ट हो जाता है ( १८, ४७ )1 राज्याधिकारियों के धनवान् होने का निषेध राजा का यह भी कर्तव्य है कि वह अपने अधिकारियों को अधिक धनवान् न होने देवे। अमात्मादि अधिकारियों से राज-कोष की रक्षा के लिए उन का कमी विश्वास नहीं करना चाहिए तथा समय-समय पर उन की परीक्षा करते रहना चाहिए (१८,४४) । नारद ने भी कहा है कि पृथ्वी पर कुलीन पुरुष भी धनवान् होने पर गर्व करने लगते हैं। सभी अधिकारी अत्यन्त धनाढ्य होने पर भविष्य में स्वामी के वशवर्ती नहीं होते अथवा कठिनाई से वश में होते हैं अथवा उस के पद की प्राप्ति के अभिलाषी हो जाते हैं (१८.४६ राज्याधिकारियों की स्थायी नियुक्ति का निषेध राजा अपने अधिकारियों की नियुक्ति स्थायी रूप से कदापि न करे और न एक स्थान पर ही उन्हें अधिक समय तक रहने दें (१८,४८)। स्थायी नियुक्ति वाले अधि. कारी राजकोष की क्षति करने वाले हो सकते हैं। अतः राजा राउमाधिकारियों की नियुक्ति अस्थायी एवं क्रमानुसार बदलने वाली ही करे । आचार्य सोमदेव का कथन है कि राजा अमात्य आदि अधिकारियों की नियुक्ति स्वदेश या परदेश का विचार न कर अस्थायी रूप से करे, क्योंकि अधिकारियों की स्थायी नियुक्ति का परिणाम भयंकर होता है (१८, ५०) । अर्थात् स्थायी अधिकारी राजकोष की क्षति करने वाले मन्त्रिपरिषद् १००
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy