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________________ स्वरूप राज्य की महान क्षति हुई 1 मित्र को अमात्यादि अधिकारी बनाने से राजकीय धन व मित्रता की हानि होती है, अर्थात् मित्र अधिकारी राजा को अपना मित्र समक्ष कर निर्भीकतापूर्वक उच्छुखल होकर उस का धन ले लेता है जिस से राजा उस का बध कर डालता है। इस प्रकार मित्र को अधिकारी बनाने से राजकीय धन व मित्रता दोनों का ही विनाश होता है ( १८, ३७ ) । मूर्ख व्यक्ति को भी अमात्मादि बनाने का निषेध किया है । मूर्ख को अमात्यादि अधिकार देने से स्वामी को धर्म, धन तथा पश की प्राप्ति कटिमाई से होती है अथवा अनिश्चित होती है। क्योंकि मूर्ख अधिकारी से स्वामी को धर्म का निश्चय नहीं होता और न धन प्राप्ति ही होती है और न ही मिलता है, परन्तु दो बातें निश्चित होती है- १) स्वामी का आपत्तिग्रसित हो जाना था ( २) नरक की प्राप्ति (१८, ४०)। मूर्ख अधिकारी ऐसे दुष्कृत्य कर बैठता है जिस से उस का स्वामी आपद्ग्रस्त हो जाता है तथा ऐसे कार्य करता है जिस से प्रजा पीड़ित होती है। इन कार्यों के परिणामस्वरूप स्वामी मरकमामी होता है। आलती व्यक्ति की नियुक्ति से भी राजा को कोई लाभ नहीं हो सकता, क्योंकि भालसी अधिकारी कोई भी राज्य-कार्य ठीक प्रकार से नई कार तार से स्थिति में समस्त कार्य राजा को ही करने पड़ते हैं ( १५, १४४ ) । किन्तु अकेला राजा समस्त कार्यों को ठीक प्रकार से नहीं कर सकता। इसी कारण विद्वानों ने आलसी को नियुक्त करने का निषेध किया है। राज्याधिकारी कर्म होने चाहिए जिस स राज्य के समस्त कार्य सुचारू रूप से चल सके। इस विषय में आचार्य सोमदेव लिखते है कि राजा को उन मन्त्री आदि अधिकारियों से कोई लाभ नहीं जिन के होने पर भी उसे स्वयं कष्ट उठाकर अपने आप ही राज्य कार्य करने पड़ें अथवा स्वयं कर्तव्य पूर्ण कर के सुख प्राप्त करना पड़े (१८, ४१)। क्षुद्र प्रकृति वाले अमात्यादि अपने-अपने अधिकारों में नियुक्त हुए सैन्धव जाति के घोहे के समान विकृत हो जाते है ( १८, ४३ ) । इस का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार सैन्धव जाति के घोड़े के दमन करने पर वह उन्मत्त होकर सवार को भूमि पर गिरा देता है उसी प्रकार अधिकारीगण भी क्षुद्र प्रकृतिकश गर्ययुन होकर राज्य को हानि करने के लिए तत्पर रहते हैं । अतः राजा को सदैव उन की परीक्षा करते रहना चाहिए । अमात्यों के अन्य दोष आचार्य सोमदेव ने अमात्यों के कुछ अन्य दोषों को और भी संकेत किया है। अह लिखते है कि जिस अमात्य में निम्नलिखित दोष पाये जायें उसे अमात्यपर्व पर नियुक्त नहीं करना चाहिए । उन के अनुसार अमात्यों के दोष इस प्रकार है- (१) भक्षणः-राजकीय धन खाने वाला, (२) उपेक्षण-राजकीय सम्पत्ति नष्ट करने वाला, . ( ३ ) प्रज्ञाहीनत्व---जिस की बुद्धि नष्ट हो गयी हो या जो राजनीतिक ज्ञान से शून्य हो, ( ४ ) अपरोच्य-प्रभावहीन, (५) प्राप्तार्थी प्रदेश-जो कर आदि उपायों द्वारा नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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