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वह आगे लिखते हैं कि विजिगीषु राजा को अप्राप्त राज्य की प्राप्ति और सुरक्षा आदि के लिए अत्यन्त बुद्धिमान् और राजनीति के धुरन्धर विद्वान् तथा अनुभवी मन्त्रियों के साथ बैठ कर मन्त्र का विचार करना अत्यन्त आवश्यक है (१०, २३)। इन बातों से स्पष्ट है कि मन्त्रियों के परामर्श का बहुत महत्त्व था और व्यवहार में राजा प्रत्येक कार्य इन मषियों के रामर्श से करता था।
मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य न करने से होने वाली हानि की ओर संकेत करते हुए आचार्य सोमदेष लिखते हैं कि प्रो राजा मन्त्रियों के परामर्श की अवहेलना करता है और उन की बात नहीं सुनता और न उम की बात पर आचरण ही करता है वह राजा नहीं रह सकता, अति उस का राज्य नष्ट हो जाता है (१०,५८)। इस वर्णन से स्पष्ट है कि प्राचीन काल में मन्त्रियों के परामर्श को बहुत महत्व दिया जाता था और प्रत्येक कार्य में उन का परामर्श अत्यन्त आवश्यक पा। इस से मन्त्रिपरिषद् के अधिकारों का अनुमान लगाना बहुत सरल है। धर्मशास्त्रों के प्रणेताबों का निर्देश था कि यघि मन्त्री लोग विरोध करें तो राजा को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी को धन दान में दे सके । यहाँ तक कि वह ब्राह्मणों को भी इस प्रकार का दान नहीं दे सकता पा 1 यह विधान आपस्तम्ब के समय तक प्रचलित रहा।' बोडकालोन भारत में भी मन्त्रिपरिषद् का महत्त्वपूर्ण स्थान था । मन्त्रिमण समय-समय पर सम्राट् की उस आज्ञा का उल्लंघन करते थे जिस से राष्ट्र की हानि होने की सम्भावना होती थी। बौद्ध प्रन्यों के अवलोकन से मन्त्रियों के अधिकारों के विषय में स्पष्ट शान प्राप्त होता है। सम्राट अशोक के आज्ञा देने पर भी मन्त्रिपरिषद् और प्रधान मन्त्री राधागुप्त ने बोस भिक्षुकों को अधिक धन दान देने का विरोध किया था और इस से विवश होकर भारत के महान् सम्राट अशोक को दान को अनुमति प्राप्त नहीं हई । २ अशोक के शिलालेखों से भी मन्त्रिपरिषद् के अधिकारों पर प्रकाश पड़ता है। अशोक ने अपने प्रधान शिलालेखों की छठी धारा में कहा है कि यदि मैं किसी दान अथवा षोषणा के सम्बन्ध में कोई आज्ञा हूँ और मन्त्रिपरिषद् में उस के सम्बन्ध में किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न हो तो मुझे उस को सूचना तुरन्त मिलनी चाहिए । यषि परिषद् में मेरे सम्बन्ध में, मेरे प्रस्ताव के सम्बन्ध में मतभेद हो अथवा वह प्रस्ताव पूर्णतया अस्वीकृत कर दिया गया हो तो उस की मुझे तुरन्त सूचना मिलनी चाहिए। इसी प्रकार जब रुद्रदामन ने सुदर्शन झील के जीर्णोद्वार की आज्ञा दी तो उसे मन्त्रियों ने अपनी स्वीकृति प्रदान नहीं की । सुदर्शन झोल के जीर्णोद्धार के सम्बन्ध में मन्त्रिगण राजा के प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। उन्होंने उस योजना के लिए धन को स्वीकृति नहीं दी और
१. आपस्तम्ब-२, १०,२६,१। २. दिव्यावदान पृ १३० तथा बागे। ३. ईण्डियन एण्टीक्वेरी-१९१३. पृ० २४२ ।
मन्त्रिपरिषद्
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