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________________ सदापि नहीं करनी चाहिए। गुरु का कथन है कि जो मन्त्री मन्त्रवेला में वैर-विरोष के उत्पादक वाद-विवाद और हंसी आदि करने है उन का मन्त्र सिद्ध नहीं होता । मन्त्रिपरिषद के कार्य __ मन्त्रियों के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि बिना प्रारम्भ किये कार्यों को प्रारम्भ करना, प्रारम्भ किये हुए कार्यों को पूर्ण करना और जो पूर्ण हो चुके हैं उन में कुछ विशेषता उत्पन्न करना तथा अपने अधिकार को उचित स्थान में प्रभाव दिखाना ये मन्त्रियों के प्रमुख कार्य हैं ( १०,२४ ) । आचार्य कौटिल्य ने भी लिखा है कि कार्य के प्रारम्भ करने के उपाय, मनुष्यों और धन का कार्यों के लिए बिनियोग, कार्यों के करने के लिए कौन-सा प्रदेश व कौन-सा समय प्रयुक्त किया जाये, कार्यसिवि के मार्ग में आने वाली बिपत्तियों का निवारण और कार्य की सिद्धि, ये मन्त्र { राजकीय परामर्श ) के पाच अंग होते है। इन्हीं कार्यो के लिए मन्त्रिपरिषद् की आवश्यकता होतो है। इस प्रकार आचार्य कौटिल्य ने भो मन्त्रिपरिषद् के पाँच कार्य बतलाये हैं। राजकार्यों में राजा को सत्परामर्श देना मन्त्रियों का प्रधान कसंध्य या । मनु ने लिखा है कि इन सचिषों के साथ राजा को राज्य को विभिन्न विकट परिस्थितियों में सपा सामान्य, सन्धि, विग्रह, राष्ट्ररक्षा तथा सत्पात्रों आदि को धन देने के कार्य में नित्य परामर्श करना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक कार्य मन्त्रियों के परामर्श से करने में हो राज्य का कल्याण है। यद्यपि राजा के लिए प्रत्येक कार्य मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से करने का विधान था, किन्तु राजा इन मस्त्रियों के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं था। मन्त्रियों से परामर्श करने के उपरान्त उस को अपना व्यक्तिगत निर्णय देने का मो अधिकार स्मृतिकारों ने राजा को प्रदान किया है। किन्तु राजा इम मन्त्रियों के परामर्श का उल्लंबन उसी समय कर सकता था जब कि उन के परामर्श में एकमपता न हो और वह राष्ट्र के हित के लिए अपना निर्णय अधिक उपयोगी समझता हो। इस का अभिप्राय यह नहीं है कि मन्त्रिपरिषद् का राजा के समक्ष कोई अस्तित्व ही नहीं था। राजा सैद्धान्तिक दृष्टि से तो यह अधिकार रखता था कि मन्त्रिपरिषद् के परामर्श को वह माने या न माने, परन्तु मन्त्रिपरिषद् में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ मन्त्रियों के होने के कारण वह उन के निर्णय को महत्त्व देता था और साधारणतः उस के अनुसार ही कार्य करता था। प्राचार्य सोमदेव ने लिखा है कि राजाओं को अपने समस्त कार्यों का प्रारम्भ सुयोग्य मन्त्रियों को मन्त्रणा से हो करना चाहिए (१०, २२)। -. ..-- १. गुरु०-नोसिवा० । ३. कौ० अर्थ० १, १३ । ३. मनु०७.१८३ ४. बहीण,७६७। नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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