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________________ राणा को अपने निजी कोश से ही उम्र का सम्पूर्ण व्यय वहन करना पड़ा।' अतः स्पष्ट है कि राजा को प्रत्येक कार्य करने से पूर्व मन्त्रिपरिषद् की स्वीकृति प्राप्त करना परम आवश्यक था। जो राजा मन्त्रियों को हितकारी बात को न मानकर अपनों स्वेच्छा से कार्य करता था उस का परिणाम भयंकर होता था। वेन, नहुष तथा यवनराज सुदास इस के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जिन्होंने मन्त्रिपरिषद् की उपेक्षा कर के अबिनयी होकर स्वेच्छाचारी शासन का प्रयत्न किया और इसी कारण उन्हें राज्य से हाथ धोना पड़ा तथा वे स्वयं भी मष्ट हो गये। ___ प्राचार्य सोमदेव ने राजा को मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करने का आदेश दिया है, किन्तु इस के साथ ही वह मन्त्रियों का भी यह कर्तव्य बतलाते हैं कि मन्त्री राजा को सदैव सत्पराम ही हैं और उसे कामो कार्य का उपदेदा न दें। इस सम्बन्ध में उन का कथन है कि मन्त्री को राजा के लिए दुःख देना उत्तम है अर्थात् यदि वह भविष्य में हितकारक किन्तु तत्काल अप्रिय लगने वाले ऐसे कठोर बचन बोल कर राजा को दुःखी करता है तो उत्सम है, परन्तु अकर्तव्य का उपदेश देकर राजा का विनाश करना अच्छा नहीं (१०, ५३)। जो मनुष्य इस प्रकार का कार्य करता है वह राजा का शत्रु है। मन्त्रियों का तो यह कर्तव्य है कि यदि राजा अपने कर्तव्य से हट कर कुमार्ग का अनुसरण करे तो उसे कठोर वचन बोल कर भी सन्मार्ग पर लाना चाहिए । इस सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव सूरि ने बड़ा हो सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है--"जिस प्रकार माता अपने शिशु को दुग्धपान कराने के उद्देश्य से उस को ताड़ित करती है, उसी प्रकार कुमार्ग पर चलने वाले राजा को कटोर वचन द्वारा मन्त्री सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करें (१०, ५४)।" इस के साथ हो सोमदेव मन्त्रियों को यह भी आदेश देते हैं कि वे राजा के अतिरिक्त अन्य किसी के साथ स्नेह आदि सम्बन्ध न रखें (१०, ५५)। राजा की सुख-सम्पत्ति हो मन्त्रियों को सुख-सम्पत्ति है और राजा के कष्ट मी मन्त्रो के कष्ट समझे जाते है। राजा जिस पुरुप पर निग्रह और अनुग्रह करते हैं वह मन्त्रियों द्वारा किया हुआ ही समझना चाहिए (१०, ५६) । इस का अभिप्राय यही है कि मन्त्रियों को पृथक् रूप से उस पुरुष पर निग्रह अथवा अनुग्रह नहीं करना चाहिए और सदैव राज्य के कल्याण का ही चिन्तन करते रहना चाहिए । आचार्य कौटिल्य भी मन्त्रियों के कार्यों का वर्णन इसी प्रकार करते हैं। राजा और मन्त्रिपरिषद उपर्युक्त वर्णन से यह बात स्पष्ट है कि राजा और मन्त्रिपरिषद् का बहुत कनिष्ठ सम्बन्ध था। राज्य का समस्त कार्य मन्त्रियों के परामर्या से ही होता था। राज्यांगों में १, एपिप्राफिया इण्ठिका--२, ४५ ( शिलालेख को पंकिसा १४, १७ ।। २. मनु० ७, ४१ । ३. को अर्थ ० ६.१। नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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