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________________ अनुसार मन्त्रियों को नियुक्ति करनी चाहिए। महाभारत में संतोस मन्त्रियों को परिषद् का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य ने मानव सम्प्रदाय के मतानुसार बारह मन्त्रियों की नियुक्ति का उल्लेख किया है, किन्तु वर्तमान उपलब्ध मनुस्मृति में यह उल्लेख मिलता है कि मन्त्रिपरिषद् में सात मा आठ मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए। मनुस्मृति में अन्यत्र ऐसा भी विवरण मिलता है कि राजा अन्य मन्त्रियों की भी नियुक्ति करे। सम्भवतः कौटिल्य ने दोनों स्थानों के वर्णन के आधार पर सामान्य रूप से मानव सम्प्रदाय के मतानुसार मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की संख्या चारह व्यक्त की है। मन्त्र का प्रधान प्रयोजन परस्पर दर-विरोष न करने वाले प्रेम और सहानभूति रखने वाले, यक्ति व अनुभव शून्य बात न करने वाले मन्त्रियों के द्वारा जो मन्त्रणा की जाती है, उस से थोड़े से उपाय से महान कार्य की सिद्धि होती है और यही मन्त्र का फल या माहात्म्य है ( १०, ५०)। सारांश यह है कि थोड़े परिश्रम से महान कार्य सिद्ध होना मन्त्रशक्ति का फल है। जिस प्रकार पृथ्वी में गढ़ी हुई विशाल पत्थर की चट्टान तिरछी लकड़ी के मन्त्रविशेष से शीघ्र ही थोड़े परिश्रम से उठायी जा सकती है, ठीक उसी प्रकार मन्त्रशक्ति से महान् काम भी घोड़े परिश्रम से सिद्ध हो जाते है ( १०, ५१)। आचार्य सोमदेव का कथन है कि किसी बात का विचार करते हो उसे शीघ्र ही कार्यरूप में परिणत कर देना चाहिए । मन्त्र में विलम्ब करने से उस के प्रकट होने का भय रहता है {१०, ४२)। अतः उसे शीघ्र ही कार्य रूप में परिणत करे, आचार्य शुक्र का भी यही विचार है कि जो मनुष्य विनार निश्चित कर के उसी समय उस पर आचरण नहीं करता उसे मन्त्र का फल प्राप्त नहीं होता। जो विजिगीषु निश्चित विचार के अनुसार कार्य नहीं करता वह हानि उठाता है। विजिगीषु ( राजा) यदि मन्त्रणा के अनुकूल कर्तव्य में प्रवृत्त नहीं होता तो उस की मन्त्रणा व्यर्थ है (१०, ४३)। शुक्र ने भी कहा है कि जो विजिगीषु मन्त्र का निश्चय कर के उस के अनुकूल कार्य महीं करता वह मन्त्र आलसी विद्यार्थी के मन्त्र की भांति व्यथं हो जाता है।' जिस प्रकार औषधि के ज्ञान हो जाने पर भी उस के भक्षण किये बिना व्याधि नष्ट नहीं होती उसी प्रकार मन्त्र के कार्य रूप में परिणत किये बिना केवल विचार मात्र से कार्य सिद्ध नहीं होता ( १०, ४४ )। १. कौ० अर्ब० १,१६। २. महार शान्ति०५.-८ । ३. मन्नु० ७.५४। ४. वहीं. ५, ६४ ५. शुक्र० भातिवा० पृ० १२० । ६. वही, पृ० १२० । नीतियाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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