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________________ करते है, "श्या केवल एक शाखा वाले वक्ष से अधिक छाया हो सकती है ? नहीं हो सकती, उसी प्रकार अकेले मन्त्रो से राज्य के महान कार्य सित नहीं हो सकते ( १०, ८२)।" एक ओर जहाँ मन्त्रियों की संख्या अधिक होने का विचार है तो दूसरी ओर मन्त्र को गुप्त रखने का प्रपन भी महत्वपूर्ण है। अधिक मस्त्रियों के होने से मन्त्र का गुप्त रखना असम्भव हो जाता है। अतः अधिक मन्त्रियों वाली परिषद् से लाभ के स्थान पर हानि भी सम्भव है। सोमदेव इस प्रश्न का समाधान करते हुए लिखते हैं कि यदि मन्त्री पूर्वोक्त गुणों से युक्त हो तो एक या दो मन्त्री रम्नने से भी राजा की हानि नहीं हो सकती (१०,७७)। मन्त्रिपरिषद् की संख्या के विषय में सोमदेव का विचार है कि राजामों को तीन, पांच या सात मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए । वे विषम संख्या वाली मन्त्रिपरिषद् पर अधिक बल देते हैं। इस का कारण यही है कि विषम संख्या वाले मन्त्रिमण्डल का एकमत होना कठिन होता है ( १०,७१-७२)। अतः वे राज्य के विरुद्ध कोई गड्यन्त्र नहीं कर सकते । सोमदेव एक या दो मन्त्रियों को नियुक्ति के विरोधी हैं । उन का कथन है कि राजा को केवल एक मन्त्रों की नियुकि नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अकेका व्यक्ति स्वच्छन्द हो सकता है (१०, ६६.६७)। प्राचार्य आगे लिखते है कि दो व्यक्तियों को भी मन्त्री न बनावे, क्योंकि वोनों मन्त्री मिलकर राज्य को नष्ट कर डालते हैं ( १०, ६८-६९) । मधिक मन्त्रियों की नियुक्ति से होने वाली हानि की ओर संकेत करते हुए वे लिखते है कि परस्पर ईया करने वाले बहुत से मन्त्रो राजा के समक्ष अपनी-अपनी बुद्धि का चमत्कार प्रकट कर के अपना मल पुष्ट करते हैं इस से राजकार्य में हानि होती है ( १०, ७३ ) । परस्पर ईO रखने वाले तथा स्थेमछाचारी मन्त्रियों की नियुक्ति से राजा को सर्बदा हानि उठानी पड़ती है । अत: उसे ऐसे व्यक्तियों को मन्त्रीपद पर कभी नियुक्त नहीं करना चाहिए । आचार्य सोमदेव सूरि ने मन्त्रिपरिषद् के लिए काई निश्चित संस्था निर्धारित नहीं की है। वे एक सन्तुलित एवं विषम संख्या वाली परिषद् के पक्ष में है, जिस में मन्त्रियों की संख्या तोन, पाच अथवा सात हो। सम्भवतः छ भो प्राचार्य कौटिल्य की भाति आवश्यकतानुसार मन्त्रियों की नियुक्ति के पक्ष में थे। किन्तु कौटिल्य ने विषम संस्था की ओर सकेत नहीं किया है। मन्त्रिपरिषद् को संख्या के विषय में प्राचीन आचार्यों में पर्याप्त भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। आचार्य कोटिल्य ने इस सम्बन्ध में अर्थशास्म में विभिन्न आचार्यों के मत उद्धत किये है जो इस प्रकार है-मानव सम्प्रदाय ( मनु आदि) का विचार है कि मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या बारह होनी चाहिए, बार्हस्पत्य सम्प्रदाय के अनुसार मन्त्रियों की संख्या सोलह तथा औशमस् (शुक्र ) सम्प्रदाय के मत से बीस होनी चाहिए । इस प्रकार विभिन्न आचार्यों के मतों का उहालेख करने के उपरान्त कौटिल्य लिखते हैं कि जितनी आवश्यकता हो उसी के मन्त्रिपरिषद् १५
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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