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________________ पृष्ठ संख्या 192 193 194 195 195 196 196 197 197 199 से 213 198 198 199 199 200 विषय 24. स्नान किये मनुष्य का कर्तव्य 25. गृहस्थ को मन्दिरों में क्या करना चाहिए 26. चारों वर्गों की पृथक प्रकृति स्वभाव 27. विनों के क्रोध उपशान्ति का उपाय 28. गुरुजनों के क्रोधोपशान्ति का उपाय 29. वणिक् जनों के क्रोधोपशमन 30. वैश्यों की क्रोध शान्ति 31, वैश्यों की श्री वृद्धि 32. नीच जातियों के मनुष्यों को वश करने का उपाय 8. वार्ता समुद्देशः 1. वार्ताविधा का स्वरूप व वैश्यों की जिविका 2. जिविका उपार्जन के साधनों से राजा का लाभ 3. गृहस्थ के सांसारिक सुखों के साधन फसलकाल में धान्य संग्रह न करें तो नृप की हानि 5. आच के बिना व्यय करने वाले मनुष्य की हानि 6. धान्य संग्रह न कर अधिक व्यय करने वाले राजा की हानि 7. धन लोलुपी राजा की हानि 8. गाय भैंस की रक्षा न करने से हानि 9. पशुओं के अकाल मरण का कारण 10. दूसरे देशों से माल आना क्यों बन्द होता है ? 11. व्यापार कहां नष्ट हो जाता है ? 12, व्यापारियों द्वारा मूल्य बढ़ाकर संचित धन से प्रजा की हानि 13. वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने के विषय में 14. व्यापारियों के छल कपट में राजा का कर्तव्य 15. राजा को वणिक लोगों से असावधान रहने से हानि 16. ईर्ष्या से वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देने पर राजा का कर्तव्य 17. अन्याय की उपेक्षा करने से हानि 18. राष्ट्र के शत्रुओं का निर्देश 19. किस राजा के राज्य में राष्ट्र कंटक नहीं होते 20. अन्न संग्रह कर देश में अकाल फैलाने वालों से हानि 21. व्यापारियों की कड़ी आलोचना 22. शरीर रक्षार्थ मानव का कर्तव्य 201 201 202 203 204 205 206 206 207 207 208 209 209 210 211 211 212
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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