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नीति वाक्यामृतम्
न्यायाधीश अपने स्वामी राजा का पक्ष स्वीकार करे, परन्तु सत्य-असत्य प्रतिपादित करने वाले वादी के साथ वाक्युद्ध न करे | 128 ॥ भागुरि ने कहा है :
यो न कुर्याद्रणं भूयो न कार्यस्तेन विग्रहः । विग्रहेण यतो दोषो महतामपि जायते ।।1 ॥
परस्पर रुपये-पैसों का लैन-दैन और एक ही घर में निवास करना ये दोनों बातें कलह विसम्बाद उत्पन्न करते हैं 1129 ॥ गुरु ने भी कहा है :
न कुर्यादर्थसम्बन्धं तथैक गृह संस्थितिम् । तस्य युद्धं बिना कालः कथंचिदपि न व्रजेत् ॥1॥
अकस्मात प्राप्त हुआ खजाना (जमीन में गढ़ा हुआ धन ) अन्याय से प्राप्त धन ये दोनों ही खतरनाक हैं । क्योंकि इनके द्वारा प्राणों के साथ ही साथ पूर्वसंचित धन को भी नष्ट कर डालती हैं । 30 ॥
वाद-विवाद में ब्राह्मण आदि के योग्य शपथ :
ब्राह्मणानां हिरण्ययज्ञोपवीत स्पर्शनं च शपथः ॥31॥ शस्त्ररल भूमिवाहन पल्याणाना: तु क्षत्रियाणाम् 1132 || श्रवणपोत स्पर्शनात् काकिणीहिरण्यो व वैश्यानाम् ||33 ॥ शूद्राणां क्षीरश्रीजयोर्वल्मीकस्य वा ? 1134 | कारूणां यो येन कर्मणा जीवति तस्यतत्कर्मोपकरणानाम् ||35 | व्रतिनामन्येषा चेष्टदेवतापादस्पर्शनात् प्रदक्षिणा दिव्यकोशात्तन्दुल तुलारोहणैर्विशुद्धिः 1136 ॥ व्याधानां तु धनुर्लघनम् 1137 ॥ अन्त्यवर्णावसायिनामार्द्रचर्मावरोहणाम् | 138
अन्वयार्थ :- (ब्राह्माणानाम् ) विप्रों की (हिरण्यः) सुवर्ण (च) और (यज्ञोपवीतम्) जनेऊ (स्पर्शनम् ) छूना ( शपथः) सौगन्ध है | |31|| (क्षत्रियाणाम् ) क्षत्रियों का ( शस्त्र) हथियार ( रत्नम् ) रत्न ( भूमि:) पृथ्वी (वाहनम्) वाहन (तु) तथा ( पल्याणानाम् ) और पलाण की 132|| (वैश्यानाम् ) वैश्या का नियम (श्रवणपोत स्पर्शनात्) कर्ण बच्चा नौका (स्पर्शनात्) छूने से (वा) अथवा (काकिणी) कौड़ी, पैसा रुपया (हिरण्ययोः) सुवर्णादि | 133 ॥ (शूद्राणाम्) शूद्रों की (क्षीर बीजयोः) दूध, बीज (वा) अथवा (वल्मीकस्य) सर्प की वामी का 1134 ॥ (कारूणाम्) धोबी चमार आदि का (यः) जो (येन) जिस कर्म द्वारा (कर्मणा) कार्य से (जीवित) जीता है (तस्य) उसे ( तत्कर्मोकरणानम् ) उस कर्म के अस्त्रशस्त्रों का स्पर्श करना। ( व्रतिनाम्) व्रतियों का ( अन्येषाम् ) और भी अन्य लोगों को (च) और सबको (इष्टदेवता) उन उन के इष्ट देव के ( पादस्पर्शनात्) चरणकमल स्पर्शनम् (प्रदक्षिणा ) फेरी लगाने (तथा) एवं (दिव्यकोशात्) धन (तन्दुल: ) चावल ( तुलारो हणैः) तराजू लांघने से (विशुद्धिः ) शुद्धि [भवति ] होती है 1136 || (व्याधानाम्) बहेलियों की (तु) तो (धनुलंघनम् ) धनुष के उल्लंघन से 1137 ॥ ( अन्त्यवर्णावसायिनाम्) नीच - चाण्डालादि की (आर्द्रचर्मावरोहणम्) गीले चमड़े पर चढ़ने की शपथ
कराना । 138 ॥
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