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________________ नीति वाक्यामृतम् जिस सभा में सभापति (न्यायाधीश) पक्षपाती वादी (मुद्दई) हो वहाँ वाद विवाद करना व्यर्थ है । क्योंकि विवाद करने वाले सभासद् और सभापति में एकमत न होने से वादी की विजय कदाऽपि संभव नहीं है । कारण स्पष्ट है अन्य सभी राजा का ही पक्ष स्वीकार करेंगे क्योंकि "जल में रहकर मगरमच्छ से बैर" युक्ति कौन अपनायेगा? कोई नहीं । फलतः वादी की पराजय सुनिश्चित है । जिस प्रकार बलशाली कुत्ता भा अनेक बकरों द्वारा परास्त कर दिया जाता है, उसी भांति प्रभावशाली वादी विरोधी राजा आदि द्वारा पराभव को प्राप्त करता है ।6।। शुक्र ने भी कहा है : प्रत्यर्थी यत्र भूपः स्यात् तत्र वादं न कारयेत् । यतो भूमिपतेः पक्षं सर्वे प्रोचुस्तथानुगाः ।। तथैव अर्थ है । विवाद में पराजित का लक्षण, अधम सभासद, वाद-विवाद में प्रमाण : विवाद भास्थाय यः सभायां नोपतिष्ठेत्, समाहूतोऽपसरति, पूर्वोक्तमुक्तरोक्तेन बाधते, निरुत्तर: पूर्वोक्तेषु युक्तेषु युक्तमुक्तं न प्रतिपद्यते, स्वदोषमनुवृत्य परदोषमुपालभते, यथार्थ वादेऽपि द्वेष्टि सभामिति पराजितलिङ्गानि ।17 ॥ छलेनाप्रतिभासेन वचनाकौशलेन चार्थ हानिः ।18॥ भुक्तिः साक्षी शासनं प्रमाणम् 19॥ प्रमाणों की निरर्थकता व वेश्या और जुआरी की बात भी प्रामाण्य कब ? : भुक्ति सापवादा, साक्रोशाः साक्षिणः शासनं च कूटलिखितमिति न विवादं समापयन्ति 10॥ बलोत्कृतमन्यायकृतं राजोपधिकृतं च न प्रमाणम् [111॥ वेश्याकितवयोरुक्तं ग्रहणानुसरितया प्रमाणयितव्यम् ।12॥ अन्वयार्थ :- (यः) जो (विवादमास्थाय) वाद-विवाद समाप्त होने पर (सभायाम) सभा में (न उपतिष्ठते) उपस्थित न हो, (समाहूतः) बुलाने पर (अपसरति) चला जाता है, (पूर्वोक्तं) पहले कथन को (उत्तरोक्तेन) बाद में (बाधते) वाधित करे (निरुत्तरः) उत्तर न दे (पूर्वोक्तेषु) पूर्व कथन पर (युक्तेषु) युक्त में (युक्तम्) सही (उक्तम्) कथन (न) नहीं (प्रतिपद्यते) स्वीकृत करे (स्वदोषम्) अपने दोष को (अनुवृत्य) छुपा (परदोषम्) दूसरे के दोष को (उपालभते) दुहरावे (यथार्थवादे) सत्य कथन पर (अपि) भी (सभाम्) सभा से (द्वेष्टि) द्वेष करे (इति) ये (पराजितः) पराजयी के (लिगानि) चिन्ह [सन्ति] हैं 1174 (छलेन) कपट से (अप्रतिभासेन) विपरीत कथन से (च) और (वचनः) वाणी के (अकौशलेन) अचतुराई से (अर्थहानिः) धन हानि [भवति] होती है । ॥ (भुक्तिः) अनुभव (साक्षी) प्रत्यक्ष (शासनम्) लेख (प्रमाणम्) प्रमाण।॥ (भुक्तिः) अनुभव (सापवादः) अपवाद युत हो, (सीक्षण:) गवाह (साक्रोशाः) कोपयुत हों, (च) और (शासनम्) लेख (कूटलिखितम्) कपटी हो (विवादम्) विवाद (न समापयन्ति) समाप्त नहीं होता है Inol (बलोत्कृतम्) बलात् (अन्यायकृतम्) अन्याय (च) और (राज्योपधिकृतम्) राजविरोधी (न) नहीं (प्रमाणम्) प्रमाणित 111॥(वेश्या कितवयोः) वेश्या व जुआरी का (उक्तम्) कथन (ग्रहणानुसरितया) विवाद-न्यायालय में समयानुसार (प्रमाणयितव्यम्) प्रमाणित करना चाहिए ॥2॥ 512
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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