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________________ नीति वाक्यामृतम् विशेषार्थ :- जो व्यक्ति विवाद कर सभा में न आवे, आग्रह से बुलाने पर भी जो सभा में आने को तैयार न हो, प्रथम कुछ कहकर अपनी ही बात को पुनः बदलकर अन्य प्रकार कथन करे, असत्य नई बात बनावे, न्यायी विद्वानों द्वारा उसी के कथन पर प्रश्न करने पर जो उत्तर न दे सके, जो अपने कथन को सत्य सिद्ध न कर सके, जो अपना कथन सिद्ध न कर उसके विपरीत प्रतिवादी को ही दोषी ठहरावे, सज्जनोंनीतिज्ञों की उचित परामर्श के विरुद्ध सभा से ही विरोध करे तो इन लक्षणों से निर्णय हो जाता है कि वह वादी, प्रतिवादी या साक्षी (गवाही) वाद-विवाद में हार गया है ।7 | जो पुरुष सभा में छल-कपट, बलात्कार व वाक्चातुर्य द्वारा वादी की स्वार्थ हानि करने का प्रयास करते हैं, वे तृच्छ, अधम त नीच समझे जाते हैं । ॥ भारद्वाज ने भी कहा है : छ लेनापि बलेनापि वचनेन सभासदः । वादिनः स्वार्थहानिं ये प्रकुर्वन्ति च तेऽधमाः ॥ अर्थ वही है। यार्थ अनुभव, सत्य गवाही (साक्षी) और यथार्थ सच्चे लेखों द्वारा प्राप्त प्रमाणों से वाद-विवाद में सत्यता का निर्णय किया जाता है 19॥ जैमिनि ने कहा है : सं वादेषु च सर्वेषु शासनं भुक्तिरुच्यते । भुक्तरनन्तरं साक्षी तदभावे च शासनम् ।।1॥ अर्थात् प्रत्यक्ष अनुभव के अभाव में साक्षी और साक्षी के अभाव में लेख को प्रमाण रूप स्वीकार किया जाता है | किसी भी वाद-विवाद के निर्णय में गूढ अनुभव, गवाही-साक्षी व लेखों द्वारा कार्य किया जाता है । जहाँ ये तीनों ही असत्य या विपरीत हों तो वहाँ झगडा शान्त न होकर उलटा अधिक उलझन सदोष अनुभव, झूठे गवाह और बनावटी लेख-दस्तावेज वाद-विवाद को जटिल बना देते हैं 10॥ रैम्य ने भी कहा है : बलात्कारेण या भुक्तिः साक्रोशाः साक्षिणोऽत्र ये । शासनं कूटलिखितप्रमाणानि त्रीण्यपि ॥1॥ सभासदों द्वारा अनुभव, साक्षी व प्रमाण बलात् अथवा अन्याय एवं राजकीय शक्ति द्वारा समन्वित किये जाते हैं तो उन्हें प्रमाणित नहीं माना जाता । क्योंकि उनके पीछे स्वार्थ छिपा रहता है । भागरि ने भी इसी का समर्थन किया है : वलात्कारेण यत् कुर्युः सभ्याश्चान्यायतस्तथा । राजोपधिकृतं तत्प्रमाणं भवेन्न हि ।।1॥ है अर्थ :- बलात्कार, अन्याय व राजकीय शक्ति से किये जाने वाले अनुभव आदि को असत्य ही समझा जाता ॥ 513
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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