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नीति वाक्यामृतम्
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विवाद समुद्देश
राजा का स्वरूप, उसकी समदृष्टि, विधान परिषद् के अधिकारी, अयोग्य सभासद, उनसे हानि, न्यायाधीश की पक्ष-पात दृष्टि :
गुणदोषयोस्तुलादण्डसमो राजा स्वगुणदोषाभ्यां जन्तुषु गौरव लाघवे ।।३॥ राजात्वपराधालिंगितानां समवर्ती तत्फलमनुभावयति ।।2। आदित्यवद्यथावस्थितार्थ प्रकाशन प्रतिभा: सभ्याः ।।3। अइष्टाश्रुतव्यवहारा परिपन्थिनः सामिषा न सभ्याः ।।4॥ लोभपक्षपाताभ्यामयथार्थवादिनः सभ्या: सभापते: सद्योमानार्थहानिलभेरन् । । तत्रालंविवादेन यत्र स्वयमेवं सभापतिः प्रत्यर्थी सभ्यसभापत्योरसामंजस्येन कुता जयः किं बहुभिश्छगलैः श्वा न क्रियते ।।6॥
अन्वयार्थ :- (गुणदोषयोः) गुण और दोष की (राजा) राजा (तुलादण्डसमः) तराजू समान है (स्व गुणदोषाभ्याम्) स्वयं उनके गुण दोषों द्वारा (जन्तुषु) प्राणियों में (गौरवलाघवे) बड़े छोटेपन (विचारयेत्] विचार करे ।।1।। (समवर्ती) समदृष्टि (राजा) राजा (तु) निश्चय से (अपराधलिंगितानाम्) अपराधियों को (तत्फलम्) अपराधफल को (अनुभावयति) अनुभव कराता है ।।2॥ (आदित्ववत्) सूर्य समान (यथाव-स्थित) ज्यों के त्यों (अर्थप्रकाशन) पदार्थ प्रकटीकरण की (प्रतिभाः) योग्यता वाले (सभ्याः) सभ्यजन हैं ।। ॥ (अदृष्टाः) जिन्हें दृष्ट नहीं (अश्रुताः) सुना भी नहीं (व्यवहारा:) राज व्यवहार (परिपन्थिन:) शत्रु [सन्ति] हैं 114॥ (लोभपक्षपाताभ्याम्) लोभ और पक्षपात द्वारा (अयथार्थवादिनः) अयोग्यवादी (सभ्याः) सभासद (सभापतेः) सभापति की (मानार्थ) मान और अर्थ की (हानिः) नाश (लभेरन्) प्राप्त करेंगे ।।5 ॥ (तत्र) उसमें (विवादेन) विवाद से (अलम्) बस (यत्र) जहाँ (स्वयमेव) स्वयं ही (सभापतिः) सभापति (प्रत्यर्थी) स्वार्थी (सभ्यसभापत्यः) सभ्यसभासद (असामंजस्येन) असमंजस से (कुता) कहाँ (जयम्) जय हो ? (किं) क्या (बहुमः) बहुत से (छगलैः) बकरों द्वारा (श्वा) कुत्ता [पराजित:] परास्त (न क्रियते) नहीं किया जाता ? 16 ||
विशेषार्थ :- तराजू के समान राजा को गुण दोषों का निर्णायक होना चाहिए । निष्पक्षभाव से गुण दोषों का निर्णय कर ही उन्हें महत्ता व लघुता प्रदान करनी चाहिए । ॥ उनके साथ यथायोग्य व्यवहार करे अर्थात् शिष्टों का पालन और दुष्टों का निग्रह करे ।।1॥
समस्त प्रजाजनों के समान नजर से देखने वाला न्यायवन्त राजा होता है । वह अपराधियों के अपराध-दोषों
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