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________________ Cal नीति वाक्यामृतम् । N है कि अपनी शक्ति देखकर युद्ध करना चाहिए ।। बलिष्ठ के साथ युद्ध नहीं करना चाहिए । ।।66॥ बलिना सह युद्धं यः प्रकरोति सुदुर्बलः।। क्षणं कृत्वात्मनः शक्त्या युद्धं तस्य विनाशनम् ॥ गुरु विद्वान रचित जो व्यक्ति बलवान का आश्रय लेकर या उपकार प्राप्त कर उसी के साथ उद्दण्डता करे, अर्थात् विरोध करे । तो तत्काल मृत्यु को निमन्त्रण देता है । अभिप्राय यह है कि उपकारी के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए 167 ॥ विदेश की यात्रा करने वाले चक्रवर्ती को भी कष्टदायक प्रवास होता है तो फिर अन्य सामान्य मनुष्य की क्या बात? उसे तो संकट का सामना करना ही होगा । चारायण ने भी कहा है :.. प्रवासे सीदति प्रायश्चक वर्त्यपि यो भवेत् । किं पुनर्यस्य पाथेयं स्वल्पं भवति गच्छतः ।। अर्थ उपर्युक्त समान ही है । यदि मनुष्य को परदेश यात्रा में पर्याप्त भोजन सामग्री, आज्ञाकारी अनुकूल सेवकजन, उत्तम पर्याप्त धन व वस्त्रादि सामग्री दुःख रुप सागर से पार करने के लिए जहाज के समान हैं 169 ॥ "॥ इति व्यवहार समुद्देश" इति श्री परम् पूज्य प्रातः स्मरणीय विश्ववंद्य चारित्र चक्रवर्ती मुनिकुञ्जर सम्राट् आचार्य परमेष्ठी, महातपस्वी, वीतरागी दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 आदिसागर जी अंकलीकर के पट्टधीश परम पूज्य तीर्थ भक्त शिरोमणि आगमतत्त्ववेत्ता 18 भाषाभाषी आचार्य श्रीमहावीर कीर्ति जी महाराज के संघस्था, परम् पूज्य वात्सल्य रत्नाकर, सन्मार्ग दिवाकर श्री 108 आचार्य विमल सागर जी महाराज की शिष्या ज्ञानचिन्तामणि प्रथम गणिनी आर्यिका विजयामती द्वारा यह हिन्दी विजयोदय की टीका का 27वाँ समुद्देश प.पूज्य तपस्वी सम्राट् सिद्धान्त चक्रवर्ती अंकलीकर के तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री सन्मतिसागर जी के पावन चरण सानिध्य में समाप्त किया । ।। ॐ शान्ति ॐ ॥ 10॥ - 509
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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