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-नीति वाक्यामृतम् । लिखिताद्वाचिकं नैव प्रतिष्ठां याति कस्यचित् । वृहस्पतेरपि प्रायः किं तेन स्यापि कस्यचित् ।।1।।
उपर्युक्त ही अर्थ है ।63॥
जो लेख (दस्तावेजादि) अनिश्चित होते हैं, वे प्रमाणित नहीं माने जाते । सारांश यह है कि मनुष्य को किसी की लिखी हुई वार्ता पर सहसा विश्वास नहीं करना चाहिए । सम्यक् प्रकार सोच-विचार कर प्रत्यक्ष व साक्षी द्वारा निर्णय करना चाहिए 164 ॥ शुक्र ने भी कहा है :
कूट लेख प्रपंचेन धूत रार्यतमा नराः ।
लेखार्थो नैव कर्त्तव्यः साभिज्ञानं विना बुधैः ॥॥ अर्थ :- धूर्त जन असत्य-कूटलेख लिखवाकर सत्पुरुषों को धोखा देने में नहीं चूकते । अत: अनिर्णीत लिखी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए 164॥
संसार में तीन पाप भयङ्कर और तत्काल फल देने वाले कहे हैं :- 1. स्वामी का बध करना, 2. स्त्री हत्या, 3. बाल बध । इनका कुफल मनुष्य को इसी भव में अत्यन्त विकट रूप में भोगना पड़ता है 165 ॥ नारद ने भी कहा है ..
स्वामिस्त्रीबालहन्तृणां सद्य फलति पातकम् । इह लोके ऽपितद्वच्च तत्परत्रोपभुज्यते ॥
अर्थ सरल है।
बलिष्ठ के साथ विरोध से हानि, बलवान के साथ उद्दण्डता से क्षति, प्रवास व सुख :
अप्लवस्थ समुद्रावगाहनमिवाबलस्य बलवत्तासहविग्रह टिरिटिल्लितम् ।।66 ॥बलवन्तमाश्रित्य विकृतिभंजन सयोमरणकारणम् 167 ॥ प्रवास: चक्रवर्तिनामपि सन्तापयति किं पुनर्नान्यम् 168 ।। बहुपाथेयं मनोनुकूलः परिजन: सुविहिश्चोपस्करः प्रवासे दुःखोत्तरण तरण्डको वर्ग: ।।69॥
अन्वयार्थ :- (अप्लवस्य) नौकारहित का (समुद्रावगाहनम्) सागर तिरने (इव) समान (अबलस्य) दुर्बल का (बलबत्तासह) बलवान के साथ (टिरिटिल्लितम्) विरोध (विग्रहा) युद्ध नाश के लिए है ।।66 ॥ (बलवन्तम्) बली का (आश्रित्य) आश्रय कर (विकृतिभंजनम्) विरोध-उद्दण्डता करना (सद्यः) शीघ्र (मरणकारणम्) मृत्यु का कारण [ अस्ति) है ।167 ॥ (प्रवासः) परदेश (चक्रवर्तिनाम्) चक्रियों को (अपि) भी (सन्तापयति) दुख देता है (पुनः) फिर (अन्यम्) दूसरे को (किम्) क्या (न) नहीं देगा? 1168 ।। (प्रवासे) यात्रा में (बहुपाथेयम्) भोजनसामग्री पर्याप्त (मनोनुकूल:) अनुकूल (परिजन:) सेवक (च) और (सुविहितः) उत्तम (उपस्करः) धन-वस्त्रादि (दुःखोत्तरण) दुःख से पार का (तरण्डकः) नौका (वर्ग:) साधन समह [सन्ति] हैं ।।69 ।।
विशेषार्थ :- विशाल सागर को बिना नौकादि साधन के मात्र भुजाओं से पार करने का प्रयास शीघ्र मृत्यु |का कारण होता है उसी प्रकार बलवान के साथ विग्रह युद्ध करना अवश्य मृत्यु का ग्रास बनना है । अभिप्राय यह
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