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- नीति वाक्यामृतम् पृथ्वीतल का भार रूप, सुख प्राप्ति का उपाय, (परोपकार) शरणागत के प्रति कर्त्तव्य व स्वार्थयुक्त परोपकार का दुष्परिणाम :
स केवलं भूभाराय जातो येन न यशोभिर्धवलितानि भुवनानि ।।32॥ परोपकारो योगिनां महान् भवति श्रेयोबन्ध इति 1B3॥ का नाम शरणागतानां परीक्षा 134॥ अभिभवनमंत्रेण परोपकारो महापातकिनां न महासत्वानाम् ॥5॥
अन्वयार्थ :- (येन) जिसके (यशोभिः) यश के द्वारा (भुवनानि) तीनों लोक (न) नहीं (धवलितानि) शुभ्र होती (स:) वह (केवलम्) मात्र (भूभाराय) पृथ्वी के भार के लिए है IB2 || (योगिनाम्) योगियों के (परोपकार:) दूसरे का उपकार (महान्) बहुत बड़ा (श्रेयोबन्धः) कल्याण का हेतू (इति) होता है ।।33 || (शरणागतानाम्) रक्षार्थ आये की (का नाम) क्या (परीक्षा) परीक्षा ? |B4 || (अभिभवन) स्वार्थवश (मन्त्रेण) मंत्र से (परोपकारः) परउपकार (महापातकिनाम्) महापापियों का काम है (महासत्त्वानाम) महा पुरुषों का (न) नहीं है 135।।
जो मनुष्य संसार में जन्म धारण कर श्रेष्ठ कार्य नहीं करता । उत्तम कर्मों से स्थायी यश प्राप्त नहीं करता तथा अपनी कीर्ति चन्द्रिका से भूमण्डल को धवलित नहीं बनाता वह भूपर भार मात्र ही समझना चाहिए |B2 || गौतम ने भी कहा है:
भुवनानि यशोभिर्नो यस्य शुक्लीकृतानि च । भूमिभाराय संजातः स पुमानिह केवलम् ॥1॥
उपर्युक्त अर्थ समझना ।।
संसार में यशस्वी, शिष्ट, दयालु महानुभावों द्वारा किया गया उपकार उनके महाकल्याण का समर्थ कारण होता है । ॥ जैमिनि ने भी यही अभिप्राय प्रकट किया है :
उपकारो भवेद्योऽत्र पुरुषाणां महात्मनाम् ।
कल्याणाय प्रभूताय स तेषां जायते ध्रुवम् ॥1॥ जो अर्थी या दु:खी व्यक्ति अपनी रक्षा की भावना से शरण में आया है उसकी परीक्षा जांच पड़ताल करना, उसकी सज्जनतादि के विषय में ऊहा-पोह करना व्यर्थ हैं 1 अभिप्राय यह है कि उसकी जानकारी के प्रपञ्च में न पड़ कर यथायोग्य सेवा-सहायता करनी चाहिए ||34 ||
जो पुरुष अपनी स्वार्थ सिद्धि के अभिप्राय रूप मन्त्र द्वारा दूसरों का उपकार भलाई करते हैं वे महापापीनीच हैं, महापुरुष नहीं कहला सकते ।।35 ॥ शुक्र ने भी स्वार्थियों की कड़ी आलोचना की है :
महापातक युक्ताः स्युस्ते निर्यान्ति वरं वलात् ।
अभिभवनमन्त्रेण न सद्वाढं कथंचन ।।1।। गुणगान शून्य नरेश, कुटुम्ब संरक्षण, परस्त्री समान पर द्रव्य रक्षण का दुष्परिणाम, अनुरक्त सेवक के प्रति ।
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