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________________ नीति वाक्यामृतम् 1 श्लेष्मास्तु बान्धवैर्मुक्तं प्रेतोभुङ्क्ते यतोयशः तस्मान्न रोदितव्यं स्यात् क्रिया कार्या प्रयत्नतः ॥ 1 ॥ किसी प्रिय सम्बन्धी के मरने पर और अन्य किसी इष्ट वस्तु का वियोग होने पर या खो जाने पर यदि वह जीवित हो जाये अथवा मिल जाये तो उसके लिए शोक करना तथा रोना सार्थक है अन्यथा व्यर्थ है ।। भारद्वाज ने भी शोक को शरीर शोषक कहा है : मृतं वा यदि वा नष्टं यदि शोकेन लभ्यते । तत्कार्येणान्यथा कार्यः केवलं कायशोषकृत् 1 17 ॥27॥ जो व्यक्ति इष्ट वियोग अनिष्ट संयोगों में पड़कर चिरकाल तक शोकाग्नि से सन्तप्त रहता है, वह अपने धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थों को नष्ट कर देता है ।। अतएव इष्ट वियोग में कभी भी सत्पुरुषों को शोक नहीं करना चाहिए | | 28 | कौशिक ने भी कहा है : यः शोकं धारयेद् देहे त्रिवर्गं नाशयेद्धि सः । क्रियमाणं चिरं कालं तस्मात्तं दूरतस्त्वयजेत् ॥॥1॥ अर्थ वही है ।। इन्द्रियजन्य भोगों का साधन धन है । श्रीमन्त भोगाकाञ्छा करें तो करें । परन्तु जो निर्धन दरिद्री है, वह भी इन्द्रियजन्य सुखों की कामना करे तो वह निंद्य है- पशु तुल्य है ।। नारद विद्वान ने भी कहा है। 29 ।। दरिद्रो यो भवेन्मर्त्यो होनो विषय सेवने । तस्य जन्म भवेद् व्यर्थं प्राहेदं नारदः स्वयम् ॥1 ॥ जो पुरुष का कभी परिचित नहीं है । अचानक मिलने पर अत्यन्त प्रीति से वार्तालाप करे । अपनत्व प्रदर्शित करे, शान्त्वना दर्शाये तो समझना चाहिए कि वह स्वर्ग से आया हुआ है । प्रेमालाप, सरल स्नेह ज्ञापन स्वर्ग च्युत मानव के चिन्ह हैं | 30 || गुरु विद्वान ने भी मधुरभाषियों को देवता घोषित किया है : अपूर्वमपि यो दृष्ट्वा संभाषयति वल्गु च 1 स ज्ञेयः पुरुषस्तज्ज्ञै यतोऽसावागतो दिवः ॥ 11 ॥ शरीर मरता है विचार नहीं मरते । शरीरधारी स्वर्गस्थ होता है उसका यश नहीं। जिन मनीषियों की कीर्तिलता दिशाम्बर में फैली होती है उनके परोपकारादिगुण उसे चिर बहार प्रदान करते हैं । अतः वे मरण वरण करके भी जीवित हैं ऐसा समझना चाहिए | 131 || नारद विद्वान ने भी कहा है : मृता अपि परिज्ञेया जीवन्तस्तेऽत्र भूतले । येषां सन्दिश्यते कीर्तिस्तडागाकर पूर्विका 1।1 ॥ 483
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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