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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ : (एक) अकेला (नक्तम्) रात्रि (वा) अथवा (दिवम् ) दिनभर (न) नहीं (हिंडेत ) घूमे । 193 || ( मनोवाक्काय:) मन वचन काय को (नियमित) नियमित (प्रतिष्ठेत ) स्थिर करे 1194 1 (अहनि ) दिन में (संध्याम्) प्रातः मध्यान्ह, शांय ( आनक्षत्रम् ) नक्षत्र ( दर्शनात् ) दिखनेपर्यन्त (उपासीत ) उपासना करे 1195 | (चतु:) चार ( पयोधि :) सागर रूप ( पयोधरां ) थनवाली (धर्मवत्सवतीम्) धर्म बछडा वाली ( उत्साहबालधिं) उत्साह पूंछ (वर्णाश्रम) चार वर्ण व चार आश्रम (खुराम्) खुरवाली, (कामार्थ) काम, अर्थ (श्रवणाम् ) कानों वाली ( नयप्रतापविषाणाम् ) नय, प्रताप सींग (सत्य शौच ) सच, शुचि (चक्षुषम् ) नेत्र (न्यायमुखीम् ) न्यायमुखी (इमाम् ) इस (ग्राम) पृथ्वी को (गोपयामि) रक्षा करता हूँ ( अतः) इसलिए (तम्) उसे (अहं) मैं ( मनसा) मन से (अपि) भी (न) नहीं (सहे) सहता (यो ) जो ( तस्यै) उसके लिए ( अपराध्येत्) अपराध करे (इति) इस (इमम्) इस प्रकार ( मंत्रम्) मंत्र को (समाधिस्थः) स्थिरचित ( जपेत् ) जपे ॥96 ॥
विशेषार्थ :- मनुष्य को दिन-रात अकेले नहीं घूमना चाहिए 1193 || मनुष्य को प्रस्थान करते समय अपने मन, वचन व काय को स्थिर करना चाहिए तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए 1194 ॥
प्रत्येक मनुष्य को तीनों संध्याओं प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल ईश्वरोपासना- भगवद्भक्ति करना चाहिए । इसका समय जब तक नक्षत्र दिखाई पड़े करना चाहिए | 195 || राजा का कर्त्तव्य है प्रजापालन, राज्यधरा का रक्षण । उसी को यहाँ गौ का रूपक देकर कथन किया है कि राजा इसे मंत्र बनाये कि "मैं इस पृथ्वी रूपी गाय का संरक्षण करता हूँ । इसके चारों सागर थन हैं, धर्मशिष्टों का पालन दुष्टों का निग्रह) ही बछडा है, उत्साह पूँछ है, चारों वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र तथा चार आश्रम - ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ व सन्यास ही खुर हैं, काम एवं अर्थ दो श्रवण - कान हैं, नय और प्रताप दो सींग हैं, सत्य और पवित्रता नयन हैं एवं न्याय मुख है । इस स्वरूप वाली मेरी गाय रूपी भूमि- राज्यधरा का जो अपराध करेगा अर्थात् इस पर आक्रमण करेगा उसे मैं मन से ही सहन नहीं कर सकता । अभिप्राय यह है कि प्रजावत्सल नृपति प्रतिदिन इस प्रकार विचार करे भोजन का समय, शक्तिहीन योग्य आहार, त्याज्य स्त्री, यथा प्रकृति वाले दम्पत्ति :
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कोकवद्दिवाकामो निशि स्निग्धं भुञ्जीत 1197 | चकोरवन्नक्तं कामो दिवा च ।1981 पारावतकामो वृष्यानयोगान् चरेत् ॥ 99 ॥ बष्कयणीनां सुरभीणां पयः सिद्धं माषदलपरमान्नं परोयोगः स्मरसंवर्द्धने । 1100 ॥ नावृषस्यन्तीं स्त्रीमभियायात् 11101 || उत्तरः प्रवर्षवान् देशः परम रहस्य मनुरागे प्रथम- प्रकृतीनाम् 11102 ॥ द्वितीय प्रकृतिः सशाद्वलमृदूपवन प्रदेश: 11103 ॥ तृतीय प्रकृतिः सुरतोत्सवाय स्यात् ।।104 ॥
अन्वयार्थ (कोकवत्) चकवा - चकवी समान (काम:) मैथुन सेवी (निशि) रात्रि में (स्निग्धम् ) चिकने पदार्थ (भुञ्जीत ) भक्षण करे | 197 ॥ ( चकोरवत्) चकोरपक्षी समान (नक्तम्) रात्रि में (काम) मैथुनेच्छु (च) और (दिवा) दिन में (पारावत) कबूतर समान (काम) मैथुन सेवा चाहने वाला (वृष्यान्नयोगान्) वीर्यवर्द्धक (चरेत् ) भोजन करे | 199 | (बष्कयणीनाम् ) प्रथम बार व्याई (सुरभीणाम् ) गायों के ( पय: सिद्धम् ) दुग्ध से निष्पन्न (माषदल) उड़द की दाल की (परमान्नम् ) खीर ( परोयोगः ) भोजन से ( स्मरसंवर्द्धने) कामोद्दीपन होता है ।।100 || (अवृषस्यन्तीम् ) कामसेवन की इच्छारहित ( स्त्रीम् ) स्त्री को (न) नहीं (अभियायात्) भोगे 11101 ॥ ( प्रवर्षवान् ) वर्षा वाले (उत्तर: ) उत्तर ( देश:) देशवासी (परमरहस्यम्) पद्मिनी नारी को (अनुरागे) प्रेम में ( प्रथम ) पहली (प्रकृतीनाम् ) प्रकृति के पुरुष [ सन्ति ] हैं 11102 ॥ ( द्वितीय प्रकृतिः) दूसरी प्रकृति वाले ( सशद्वल) हरी दूब
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