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________________ - नीति वाक्यामृतम् लाधवं कर्म सामर्थ्य स्थैर्य दुःख सहिष्णुता । दोष क्षयोऽनि वृद्धिश्च व्यायामादुपजायते ।। ।। अर्थात् व्यायाम करने से शारीरिक स्फूर्ति, चुस्ती, लघुता, कार्य करने में उत्साह, कार्य की क्षमता, शारीरिक शक्ति का स्फुरण, दुःखों को सहने की योग्यता - दृढ़ता, बात, पित्त, कफादि से उत्पन्न रोगों का उपशमन एवं जठराग्नि का उद्दीपन होता है । अत: बालक, किशोर, युवक को योग्यतानुसार व्यायाम-कसरत अवश्य करना चाहिए I1॥19॥ निद्रा का लक्षण उससे लाभ, समर्थन, आयुरक्षक कार्य, स्नान का उद्देश्य व लाभ, स्नान की निरर्थकता, स्नानविधि व निषिद्ध स्नान : इन्द्रियात्म मनोमरुतां सूक्ष्मावस्था स्वापः ॥20॥ यथासात्म्यं स्वपाद् भुक्तान पाको भवति प्रसीदन्ति चेन्द्रियाणि 101॥ सुघटितमपिहितं चभाजनं साधयत्यन्नानि 12.2 ॥ नित्य स्नानं द्वितीय मुत्सादनं तृतीय कमायुष्यं चतुर्थक प्रत्यायुष्यमित्यहीन सेवेत 123 ।। धर्मार्थ कामशुद्धिदुर्जनस्पर्शाः स्नानस्य कारणानि । 24 ॥ श्रमस्वेदालस्य विगमः स्नानस्य फलम् ।25।। जलचरस्येव तत्स्वानं यत्र न सन्ति देव गुरु धर्मोपासनानि ।।26॥ प्रादुर्भवक्षुत्पिपासीउभ्या स्वानं कुयात् ॥ आतप संतप्तस्य अलावगाहो दुग्मान्द्यं शिरोव्यथां च करोति | | अन्वयार्थ :- पाँचो इन्द्रियों (स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु च श्रोत्र), आत्मा और मन एवं श्वासोच्छ्वास की अत्यन्त सूक्ष्म अवस्था अर्थात् धीमे-धीमे संचार होना "निंद्रा" कहलाती है 120 ।। प्रकृति के अनुकूल यथेष्ठ निंद्रा लेने से किया हुआ भोजन सम्यक् प्रकार से पच जाता है और समस्त इन्द्रियाँ पुष्ट एवं स्वस्थ हो जाती हैं 121॥ भोजन पकाने वाला पात्र यदि अभिन्न व ऑपन मुख होता है तो अन्न या सब्जी पकाने में कार्यकारी होता है उसी प्रकार यथेष्ठ निद्रा लेने पर शरीर स्वस्थ होकर कर्तव्यपालन में समर्थ होता है 122 || अत: निद्रा लेना आवश्यक मनुष्य को प्रत्येक कार्य समयानुसार करना चाहिए । नित्यस्नान, स्निग्ध पदार्थों से उबटन करना, आयु सुरक्षा के साधनभूत ऋतु के अनुसार व प्रकृति के अनुरूप आहार-विहार करना, पूर्व कथित मल-मुत्रादि स्वाभाविक क्रियाओं के वेग का अवरोध नहीं करना, व्यायाम व अभ्यंग-स्नानादि करना चाहिए । इन कार्यों में न्यूनाधिकता नहीं करने से जीवन में सतत् सुख शान्ति बनी रहती है ।23 ।। धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थ की शुद्धि के लिए एवं दुष्टों का स्पर्श हो जाने पर स्नान करना चाहिए । इस से वाझ शुद्धि होती है और यह अन्तरङ्ग शुद्धि की भी कारण बनती है 104 | नान करने से शरीर की थकावट, आलस्य और पसीना नष्ट हो जाते हैं ।25॥ चरक विद्वान ने भी कहा पवित्रं वृष्यमायुष्यं श्रम स्वेद मलापहम् । शरीरबल सन्धानं स्नामोजस्करं परम् ॥1॥ अर्थात् सान शरीर को पवित्र करने वाला, कामोद्दीपक, आयुवर्द्धक, परिश्रम, स्वेद-पसीना व शरीरमल को दूर करने वाला, शारीरिक शक्तिवर्द्धक और शरीर को तेजस्वी बनाने वाला है ॥ त | 458
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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