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________________ -नीति वाक्यामृतम् व्यायाम करना शरीर रक्षा का प्रथम सोपान है - उपाय है । अत: प्रत्येक पुरुष को प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। परन्तु निम्न व्यक्तियों को नहीं :- 1. जिनके शरीर में रक्त की कमी हो, 2. दुर्बल व्यक्ति, 3. अजीर्ण रोग ग्रस्त, 4. शरीर से वृद्ध, 5. लकवा-पक्षाघातादि रोग युक्त और 6. रुक्ष भोजन आहारी । इनके अतिरिक्त अन्य बालक, नवयुवकों को नियमित रूप से शक्ति के अनुसार प्रतिदिन प्रात:काल व्यायाम करना अत्यन्त अनिवार्य है। क्योंकि उषाकालीन व्यायाम-रसायन के समान सुखद होता है ।14॥ चरक ने भी कहा है : बाल वृद्ध प्रवाताश्च ये घोच्चबहुभाषकाः । ते वर्जयेयुर्व्यायाम क्षुधितास्तृषिताश्च ये 1॥ वही अर्थ है ।। व्यायाम क्या है ? शरीर में परिश्रम या थकान उत्पन्न करने वाली क्रिया अर्थात् दण्ड-बैठक, मुद्गर भ्रमण, दौड़ व ड्रील आदि समस्त क्रियायें, विशेष रीति के खेल-कूद, रैस आदि कार्य "व्यायाम" कहे जाते हैं । चरक विद्वान ने भी यही समर्थित किया है : शरीर चेष्टा या चेष्टा स्थैर्यार्था बलवर्द्धिनी । देह व्यायाम संख्यातामात्रया तां समाचरेत् ।।1।। अर्थात् शरीर को स्थिर रखने वाली, शक्तिवर्धिनी व मन को प्रिय लगने वाली शस्त्र संचालन-आदि शारीरिक क्रियाओं को व्यायाम कहते हैं । इसे उचित मात्रा में करना चाहिए 115 ॥ व्यायाम की सफलता अस्त्र शस्त्र सञ्चालन व अश्वारोहण, गजारोहणादि सवारियों से होती है ।1611 आयुर्वेद के उद्भट विद्वान आचार्य ने कहा है कि जब तक शरीर पसीना-पसीना न हो जाय तब तक व्यायाम करते रहना चाहिए ।16 || चरक विद्वान ने भी कहा है : श्रमः क्लमः क्षयस्तृष्णा रक्तपित्तं प्रतामकः । अतिव्यायामतः कासो ज्वरर्दिश्च जायते ॥ अति मात्रा में व्यायाम करने से अत्यन्त थकावट, मन में ग्लानि व ज्वरादि अनेक रोगों के होने की संभावना कही है ।। अभिप्राय यह है कि व्यायाम यथासमय, और यथाशक्ति करना चाहिए 117॥ आगे यह कहते है । जो मानव समय और शक्ति का ध्यान न रखकर अतिरेक रूप से व्यायाम आदि करते हैं उनके शारीरिक अनेक कौन-कौन रोग नहीं होते ? सर्व ही रोग होते हैं 18 In जो व्यक्ति कालानुसार उचित व्यायाम का अभ्यास नहीं करते उनको जठराग्नि का उद्दीपन-वृद्धि, शरीर में उत्साह और दृढता, सुगठिता किस प्रकार हो सकते हैं? अर्थात् नहीं हो सकते ।ng॥ चरक विद्वान ने भी कहा 457
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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