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नीति वाक्यामृतम्।
(25)
जी महारा
दिवसानुष्ठान - समुद्देश
नित्य कर्त्तव्य, सुखी निद्रा से लाभ, सूर्योदय व सूर्यास्तकाल में सोने से हानि
बा मुहूर्ते उत्यायेति कर्त्तव्यतायां समाधिमुपेयात् ।।1 ॥ सुखनिद्राप्रसन्ने हि मनसि प्रतिफलन्ति यथार्थ ग्राहिका बुद्धयः ॥ 12 ॥ उदयास्तमनशायिषु धर्मकालातिक्रमः 113 | आत्मवक्त्रमाज्ये दर्पणे वा निरीक्षेत् 114 ॥ न प्रातर्वर्षधरं विकलाङ्ग वा पश्येत् 115 ॥ सन्ध्या सुधौतमुखं जप्त्वा देवतोऽनुगृह्णाति ॥16 ॥ नित्यमदन्त धावनस्य नास्ति मुखशुद्धिः ॥17॥ न कार्य व्यासंगेन शरीरं कर्मोपहन्यात् ॥ 8 ॥ न खलु युगैरपि तरङ्गविगमात् सागरे स्नानम् ॥19॥ वेग-व्यायाम स्वाप स्नान- भोजन स्वच्छन्द वृत्तिं कालान्नोपरुन्ध्यात् 111on
अन्वयार्थ :- (ब्राह्येमुहूर्ते) प्रात: ( उत्थाय ) उठकर (इति) इस प्रकार ( कर्त्तव्यतायाम् ) करने योग्य कार्यों में (समाधि) स्थिर चित्त (उपेयात्) प्राप्त करे 1111 (सुखनिद्रा) गहरी नींद (हि) निश्चय से ( प्रसन्ने ) स्वास्थ (मनसि ) मन में (यथार्थ ) याथातथ्य ( ग्राहिका) ग्रहण करने वाली ( बुद्धयः) बुद्धियाँ (प्रतिफलन्ति ) स्पष्ट फलती हैं 112 11 ( उदय + अस्तमन) सूर्योदय और अस्त समय में (शायिषु) सोने वालों के ( धर्म:) धर्म कार्य का (कालातिक्रमः) समय पर धर्म कार्य नहीं होता ॥ 13 ॥ प्रातः काल (आत्मवक्त्रम्) अपना मुख (आज्ये) घृत में (वा) अथवा (दर्पणे) शीशे में (निरीक्षेत्) अवलोके ॥14॥ (प्रातः) प्रभात में (वर्षधरम् ) नपुंसक (वा) अथवा ( विकलाङ्गम् ) अंगहीन को (न) नहीं (पश्येत् ) देखे ॥15 ॥ ( सन्ध्या) तीनों संध्याकाल में ( धौतमुखम् ) मुख धोकर ( जात्वा) जपकरके ध्यान करने वाले पर (देवता) 24 भगवान (अनुगृहणाति) अनुगृह करते हैं 116 1 (नित्यम् ) प्रतिदिन ( अदन्तधावनस्य) दांतुन नहीं करने वाले के ( मुखशुद्धिः) मुखशोधन ( नास्ति) नहीं होता ॥7 ॥ ( कार्य व्यासंगेन) विशेष कार्य के आने पर (शारीरम् ) शारीरिक (कर्म) क्रिया मल मूत्र क्षेपनादि को (न) नहीं (उपहन्यात्) नष्ट करे | 8 ॥ ( खलु ) निश्चय से (युगैः) युगों से (तरङ्ग) लहरें (विगमात् ) विलय होने पर (अपि) भी (सागरे) समुद्र में (स्नानम्) स्नान (न) नहीं (कुर्यात्) करे | 19 ॥ (वेगः) मूत्रादि (व्यायाम) व्यायाम (स्वापः) निद्रा (स्नानम्) नहाना (भोजन) भोजन (स्वच्छन्दवृत्तिं) स्वच्छ हवा टहलना में (कालात् ) समय से व्यतिरेक (न) नहीं (उपरुन्ध्यात्) उल्लंघन करे ||10
विशेषार्थ :- प्रातः काल उठकर इस शास्त्र में जो नियम बतलाये हैं उनके अनुसार पालन करना चाहिए ।।1 ॥
• जिस पुरुष का चित्त निश्चिन्त सुख से निद्रा लेने से स्वस्थ रहता है तो प्रसन्नता जाग्रत होती है । इससे मन में,