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भीति वाक्यामृतम्।
___ उस राज्य को प्राप्ति से क्या प्रयोजन ? जिसे पाकर मानव लोकनिन्दा का पात्र बने ।। कहावत है कि "वद भला बदनाम बुरा" खराब होना उतना खतरनाक नहीं जितना बदनाम होना-कुख्यात होना बुरा है ।।9। शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
जनापवादसहितं यदाज्यमिह कीर्त्यते ।
प्रभूतमपि तन्मिथ्या तत्पापाय राजसंस्थिते ।।1।। पुत्र का कर्तव्य है कि प्रत्येक कार्य में पिता की आज्ञा स्वीकार करे एवं पिता जो आज्ञा करे तदनुसार ही कार्य करे । उनके आदेश का कभी भी किसी भी अवस्था में उल्लंघन न करे । दृष्टान्त और पुत्र के प्रति पिता का कर्तव्य :
किन्नु खलु रामः क्रमेण विक्रमेण वा हीनो यः पितुराजया वनमाविवेश ।।81॥ यः खलु पुत्रो मनसितपरम्परया लभ्यते स कथमपकर्तव्यः ।182 ।। कर्त्तव्यमेवाशुभं कर्म यदि हन्यमानस्य विपद्विधानमात्मनो न भवेत् ॥183॥
अन्वयार्थ :- (किम्) क्या (नु) निश्चय से (रामः) रामचन्द्र (क्रमेण) राजनीति तत्वों के ज्ञान में (वा) अथवा (विक्रमेण) शूरवीरता से (हीनः) कम थे (य:) जो (पितुः) पिता की (आज्ञया) आज्ञा से (खलु) निश्चय ही (वनम) वन को (आविवेश) प्रविष्ट हुए 181 || (यः) जो (पुत्रः) पुत्र (खल) निश्चय ही (मनसित) मनौतियों की (परम्परया) परम्पराओं द्वारा (लभ्यते) प्राप्त किया गया (सः) वह पुत्र (कथम्) किस प्रकार (अपकर्त्तव्य:) अपकार का पात्र होना चाहिए? नहीं 182 ॥ (अशुभम्) अशुभ (कर्त्तव्यम्) कार्य करना चाहिए (एव) यह ही (कर्म) कार्य (यदि) अगर (हन्यमानस्य) हिंसक को (विपद) विपत्ति का (विधानम्) विधान (आत्मनः) आत्मा का (न) नहीं (भवेत्) होवे? 1183 ओ
विशेषार्थ :- रामचन्द्र महानुभाव थे । राजनीति कुशल और सुभटों में सुभट थे । फिर भी पिता की आज्ञा पालनार्थ राज्यसम्पदा त्याग वन में प्रविष्ट हुए । क्या इससे उनकी राजनैतिज्ञता और सुभटत्व कम हो गया ? नहीं, अपितु निखर कर विश्वव्यापी यश के रूप में विखर गया । सारांश यह है कि लोक परम्परा के अनुसार ज्येष्ठ होने से राम राजगद्दी के अधिकारी थे ही । वलिष्ठ होने से यदि चाहते तो भरत को ही नहीं पिता को भी परास्त कर सकते थे, कैकेयी को कैदी बनाकर भी राजगद्दी प्राप्त कर सकते थे । परन्तु ऐसा नहीं किया । क्यों ? क्योंकि पिता की आज्ञा पालन करना पुत्र का कर्तव्य है । अतः 14 वर्ष तक कठोर आज्ञा का पालन किया । उनका गौरव ही विशेष हुआ । अतः सम्यक्त्वी सदाचारी पुरुषों को पिता की आज्ञा अवश्यमेव पालन करना चाहिए 181॥
माता-पिता को पुत्र प्राप्ति करना स्वर्ग सम्पदा प्राप्ति के समान होता है । उसके लिए नहीं होने पर नाना प्रकार की मनौतियाँ मनाते हैं । यहाँ तक कि मिथ्या देवी देवताओं की शरण में भी पहुँच जाते हैं । इस प्रकार के प्रयलो से प्राप्त पुत्र के प्रति भला माता-पिता अपाय किस प्रकार सोच सकते हैं ? नहीं सोच सकते । गुरु विद्वान का उद्धरण :
उपायाचित संघातर्यः कच्छे ण पलभ्यते । तस्मादात्मजस्य नो पापं चिन्तनीयं कथंचन ।।
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