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नीति वाक्यामृतम्
"हिन्दी भाषानुवादकर्तृ का मंगलाचरण "
प्रथम जिन्होंने षट्कर्मों का, जगती को उपदेश किया । केवलज्ञान विभूति पाकर, मोक्षमार्ग उपदेश दिया ।। नव केवल लब्धि के धारी, उन जिनवर को नमन करूँ । सिद्ध प्रभु का ध्यान लगाकर, टीका का विस्तार करूँ ।। ॥ अनेकान्त सिद्धान्त की प्रतिपादक जो सरस्वती के चरण में शीश झुकाऊँ आज
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कलिकाल में मुनि मार्ग का, जब हो रहा कुछ ह्रास था, कैसे धरें दिगम्बर मुद्रा, नहीं हो रहा जब भान था ॥ 2 ॥
धरकर दिगम्बर वीर मुद्रा, सत्य मार्ग दर्शा दिया । उन आदिसागराचार्य चरण में शत शत वन्दन नमन किया ॥
महावीर कीर्ति आचार्य को वन्दन करूँ त्रिकाल, विमल सिन्धु आचार्य के चरणों नाऊँ भाल ॥ ३॥
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अंकलीकर आचार्य जी, आदि सूरि गुरु राज, उनके तृतीय पद पर शोभित हैं यतिराज महान । सन्मति सिन्धु आचार्य को, वन्दन बारम्बार, जिनके सद् उपदेश से कर रही टीका सार
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