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________________ भीति वाक्यामृतम् -- त्यागता है ? 1154 ॥ (कपिः) बानर (शिक्षाशतेन) सैकड़ों शिक्षा देने पर (अपि) भी (खलु) निश्चय से (चापल्यम्) चपलता (न) नहीं (परिहरति) त्यागता है 155॥ (इक्षुरसेन) गन्ने के रस से (अपि) भी (सिक्तः) सिंचित (निम्बः) नीम (कटुः) कड़वा (एव) ही [भवति] होता है 1156 ॥ विशेषार्थ :- जिसका जो स्वभाव होता है उसे विधाता भी परिवर्तित नहीं कर सकता । अन्य की क्या बात? नारद ने भी कहा है - 153|| व्याघ्रः सेवति कामनं सुगहनं, सिंहो गुहां सेवते । हंसः सेवति पद्मनिं कुसुमितां गृद्धः श्मशानस्थलीम् ॥ साधु सेवति साधुमेव सततं नीचोऽपिनीचं जनम् । या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता दुःखेन सा त्यज्यते ।।1।। अर्थ :- व्याघ्र गहन वन प्रदेश में निवास चाहता है, शेर गुफा में रहना पसन्द करता है, हंस पक्षी को सुमनो से युक्त सरोवर की वाञ्छा करता है, गद्ध पक्षी श्मशान भूमि को श्रेष्ठ मानता है, साधुजन श्रमणों के मध्य रहना चाहते हैं, नीच पुरुष अपने समान नीचों की संगति में ही आनन्द मानता है । जिसकी प्रकृति जैसी होती है वह उसी स्वभाव रूप में रमता है उसका त्याग करना अति कठिन है Ins4॥ श्वान-कुत्ते को भरपेट शुद्ध, सुस्वादु भोजन कराने पर भी क्या वह अपवित्र मांसादि लिप्त अस्थि का चबाना त्यागता है ? नहीं उसे उस हड्डी के चाटे बिना तति नहीं होती । 154 ॥ भृगु विद्वान ने भी यही अभिप्राय प्रकट किया है 1154॥ स्वभावो नान्यथाकतुं शक्यः के नापि कुप्रचित् । श्वेव सर्वरसान् भुक्त्वा बिना मेध्यान्न तृप्यति 111 ।। अर्थात् कुत्ता सब कुछ शुद्ध पदार्थ खाने पर भी हड्डी के बिना तृप्त नहीं होता ।। वानर की चपलता जग प्रसिद्ध है । उसे स्थिर शान्त बैठने की सैकड़ों शिक्षा दिये जाने पर भी वह अपने चपल स्वभाव को नहीं छोड़ सकता 155 ।। अत्रि विद्वान ने भी कहा है : प्रोक्तः शिक्षाशतेनाऽपि न चापल्यं त्यजेत्कपिः । स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ॥ उपदेश स्वभाव को बदलने में समर्थ नहीं होता, यथा बन्दर को सैकडों शिक्षा दी जायें पर उसकी चपलता नहीं जाती In नीम का स्वभाव कट होता है । यदि उसे सुमधुर इक्षु-गन्ने के रस से भी सींचा जाय तो भी वह मधुर , नहीं होता। अपनी कटुता नहीं छोड़ता 157 ॥ गर्ग विद्वान ने भी यही कहा है : 441
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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