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नीति वाक्यामृतम् ।
राजरक्षा समुद्देश
राजा की रक्षा, उपाय, अपनी रक्षार्थ रखने योग्यायोग्य पुरुष :
राज्ञि रक्षिते सर्व रक्षितम् भवत्यतः स्वेभ्यः परेभ्यश्च नित्यं राजा रक्षितव्यः ।।1 ॥ अतएवोक्तं नयविद्भिपितपैतमहं महासम्बन्धानुबद्धं शिक्षितमनुरक्तं कृतकर्मणं चजनं आसत्रं कुर्वीत 112 | अन्यदेशीयमकतार्थमानं स्वदेशीयं चापकृत्योपगृहीतमासन्नं न कुर्वीत । ॥ चित्तविकृते स्त्य विषयः किन्नं भवति मातापि राक्षसी ।५॥
अन्वयार्थ :- (राज्ञि) राजा के (रक्षिते) रक्षित होने पर (सर्वम्) सभी (रक्षितम्) रक्षित (भवति) होता है (अतः) अतएव (स्वेभ्यः) अपने (परेभ्यः च) और पर के द्वारा (नित्यम्) सदैव (राजा) राजा (रक्षितव्यः) रक्षा करना चाहिए । ॥ (अतएव) इसलिए (नयविद्भिः) नय वेत्ताओं ने (उक्तम्) कहा है (पितृ पैतामहम्) वंश परम्परा से चले आये भाई बन्धु (महासम्बन्ध) विवाह सम्बन्धी (अनुबद्धम्) शाला आदि (शिक्षितम्) शिक्षित (अनुरक्तम्) प्रेमी (च) और (कृतकर्मणम्) राजकर्म निपुण (जनम्) मनुष्य को (आसन्नम्) निकट (कुर्वीत) करे 12 ॥ (अन्यदेशीयम्) दूसरे देश का (अकृतार्थानाम्) सत्कार रहित (अपकृत्य) अपकारी (स्वदेशीयम्) अपने
ज्य का (च) और (उपगृहीतम) दण्डित को (आसन्नम्) निकटी (न) नहीं (कुर्वीत) करे ।।।। (चित्तविकृते) मनोविकार होने पर (अविषय:) अनर्थों (नास्ति) नहीं है ? (किम्) क्या (माता) माँ (अपि) भी (राक्षसी) भक्षिका (न) नहीं (भवति) होती है ? 14॥
विशषार्थ :- राजा सर्वदेवमय होता है । सर्वप्रजा का रक्षक होता है । अतः राजा की रक्षा सबकी रक्षा है । इसलिए स्वयं के द्वारा तथा अन्यों के द्वारा राजा की रक्षा कराना चाहिए । अभिप्राय यह है कि राष्ट्र सुरक्षार्थ राजा को अपने कुटुम्बियों व शत्रुओं से सदेव
रक्षिते भूमिनाथे तु आत्मीयेभ्यः सदैव हि ।
परेभ्यश्च यतस्तस्य रक्षा देशस्य जायते ।।1।। नीतिकारों ने कहा है कि भूपाल अपनी रक्षार्थ ऐसे पुरुषों को नियुक्त करे, जो उसके वंश का भाई-बन्धु हो, वैवाहिक सम्बन्ध वालों में से साला वगैरह हो, नीतिशास्त्रज्ञ हो, राजा से अनुरक्त हो, और राजकीय कार्यों में कुशल हो 12 ॥ गुरु विद्वान ने भी कहा है:
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