________________
शुक्र विद्वान ने भी यही कहा है :
नीति वाक्यामृतम्
क्षीर युक्तानि धान्यानि यो गृहणाति महीपतिः । कर्षकाराणां करोत्यत्र विदेशगमनं हि सः ।।1 ॥
क्षीरयुक्त अर्थात् कच्चे धान्यादि को जो राजा ग्रहण कर लेता है और बेचारे किसानों को विदेश गमन करा देता है उसके राज्य में असंतोष और दुःख व्याप्त होता है ।।1 ॥ लवणकाले अर्थात् फसल काटने के समय यदि राजा अपने हाथी, घोड़े, रथ, पयादे आदि सेना को खेतों के मध्य से प्रयाण कराता है - गमनागमन कराता है तो नियम से वह दुर्भिक्ष को निमन्त्रण देता है क्योंकि सेना धान्य फसल का सत्यानाश कर देगी । जिससे अन्नाभाव - दुर्भिक्ष सुनिश्चित है । अतः राजा की विवेकशील दूरदर्शी होना चाहिए । जैमिनि विद्वान ने भी कहा है :
सस्यानां परिपक्वानां समये यो महीपतिः । सैन्यं प्रचारयेत्तच्च दुर्भिक्षं प्रकरोति सः ॥ 11 ॥
उपर्युक्त ही अर्थ है 116 ||
अब प्रजा पीड़ा से हानि, टैक्स मुक्त पुरुषों के प्रति राजकर्त्तव्य, मर्यादा उल्लंघन से हानि, प्रजा की रक्षा के उपाय व न्याय से सुरक्षित राष्ट्र के शुल्क स्थानों से लाभ :
सर्व बाधा प्रजानां कोशं पीडयति ||17 ॥ दत्तपरिहारमनुगृह्णीयात् 1118 || मर्यादातिक्रमेण फलवत्यपि भूमिर्भवत्यरण्यानी 1119 ॥ क्षीणजनसम्भावनं तृण शलाकाया अपि स्वयमग्रहः । कदाचित्किंचिदुपजीवनमिति परमः प्रजानां वर्धनोपायः 1120 | न्यायेन रक्षिता पण्यपुट भेदिनी पिष्ठा राज्ञां कामधेनुः ॥ 21 ॥ पाठान्तर - "न्यायेन रक्षिता पण्यपुट भेदिनी राज्ञां कामधेनुः ॥"
अन्वयार्थ (प्रजानाम्) प्रजा को (सर्वबाधा) हर प्रकार कष्ट दे [स] वह राजा (कोशम्) अपने खजाने को (पीडयति) कष्ट देता है । पाठान्तर है ( कर्षयन्ति) कृषकों को पीड़ित करते हैं | 117 || (दत्त) टैक्सादि (परिहारम् ) निषेध कर (अनुगृह्णीयात्) उनसे पुनः टैक्स न ले, अपितु अनुग्रह करे ।।18 || (मर्यादा) सीमा (अतिक्रमेण) उल्लंघन करने से ( फलवति) फलवान (अपि) भी (भूमि) पृथ्वी (अरण्यानि ) जंगल (भवति) होती है 1179 (क्षीणजनसम्भावनम् ) दरिद्रों की सहाय (तृण शलाकायाः) तिनका (अपि) भी (स्वयम्) अपने आप ( अग्रह : ) नहीं लेना (कदाचित् ) कभी-कभी (किंचित्) कुछ न कुछ (उपजीवनम् ) जीवन साधन (परमः) उत्तम (प्रजानाम्) प्रजा की (वर्धनोपायः ) वृद्धि का उपाय है ॥20 ॥ ( न्यायेन) नीति पूर्वक ( रक्षिता) रक्षित ( पण्य) बाजार - दुकाने (पुट भेदिनी) अधिक मात्रा में हों (राज्ञाम् ) राजाओं को ( कामधेनुः) कामधेनु गाय के समान है 1121
विशेषार्थ जो राजा अपनी प्रजा को सर्वत्र, सर्वप्रकारेण कष्ट देता है । आवश्यकता से अधिक टैक्स लेता है तो उसकी प्रजा विरोध में खड़ी होकर बगावत करेगी। टैक्सादि भी नहीं देगी । फलस्वरूप खजाना - कोष रिक्त होता जायेगा। गर्ग विद्वान ने भी कहा है :
398