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नीति वाक्यामृतम्
रोगजनक होने से विष समान हानिकारक हो, 2. जहाँ की भूमि ऊपर घास अन्न की उपज से रहित हो, 3. जहाँ की पृथ्वी विशेष पथरीली, अधिक कंटकाकीर्ण तथा अधिक पर्वत, असम गर्म और गुफाओं से व्याप्त हो, 4. जहाँ पर बहुत सी जलवृष्टि द्वारा प्रजाजनों का जीवन (धान्य की उपज ) होती हो 5. जहाँ पर बहुलता से सर्प, भील और म्लेच्छों का निवास हो, 6. जिसमें थोड़ी-सी धान्य (अन्न) उत्पन्न होती है, 7. जहाँ के लोग धान्य की उपज कम होने के कारण वृक्षों के फलों द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हों ॥19॥ ये सर्व देश के दोष हैं ।।
जिस देश में बिना मेघों के कृषि करने की व्यवस्था हो, कर्षणक्रिया के बिना फसल उत्पन्न होती हो, अर्थात् जहाँ कछवारों की पथरीली भूमि में बिना हल जोते ही बीज वखेर दिये जाते हैं। वहाँ सतत् अकाल बना रहता है क्योंकि ऊसर - बंजर भूमि में बीज जमता नहीं, वर्षा भी यथासमय, यथोचित प्रमाण में नहीं होती । कोई निश्चय ही नहीं रहता समय पर वर्षा होने का कांटे-भाटे से भरी भूमि में किस प्रकार, कितना अन्न हो सकता है ? नहीं के बराबर । अतः ऐसे देश में अकाल होना स्वाभाविक है 1110 ॥ गुरु विद्वान के उद्धरण का भी यही अभिप्राय है :
मेघजेनाम्मसा यत्र सस्यं च नग्रैष्मिकम् । सदैव तत्र दुर्भिक्षं कृष्यारम्भो न यत्र च ॥ ११ ॥
क्षत्रिय व वैश्यों की अधिक संख्या वाले ग्रामों से क्षति व स्वदेशी एवं परदेशी के प्रति राज्य का कर्त्तव्य निर्धारण :
अर्थ ऊपर प्रमाण है | 110 ॥
क्षत्रियप्राया हि ग्रामाः स्वल्पास्वपि बाधासु प्रतियुद्धयन्ते ।।11 ॥ म्रियमाणोऽपि द्विजलोको न खलु सान्त्वेन सिद्धमप्यर्थं प्रयच्छति ।।12 ॥ स्वभूमिकं भुक्तपूर्वमभुक्तं वा जनपदं स्वदेशाभिमुखं दानमानाभ्यां परदेशादावहेत् वासयेच्च ।।13।। पाठान्तर भूमिकं भुक्तपूर्वं वा जनपदं स्वदेशाभिमुख्यं दानमानाभ्यां परदेशोपवाहनेन वा वासयेत् ॥13॥
अन्वयार्थ :- (क्षत्रियप्रायाः ) अधिक क्षत्रियों से युक्त (ग्रामाः ) ग्राम (हि) निश्चय से (स्वल्पासु) अल्प भी (बाधासु) बाधा, विघ्न होने पर (अपि) भी ( प्रतियुद्धयन्ते) परस्पर युद्ध करते हैं ।।11 ॥ (द्विजलोका: ) ब्राह्मण ( म्रियमाणाः) मरने पर (अपि) भी (खलु) निश्चय से ( सान्त्वेन) शान्ति से (सिद्धम् ) न्यायोक्त (अपि) भी (अर्थम्) टैक्स आदि धन (न) नहीं ( प्रयच्छति देते हैं 1112 ( स्वभूमिकम्) अपना कर (भुक्तपूर्वम्) पहले चुकाया (वा) अथवा (अभुक्तम्) न चुकाया (जनपदम् ) जनपद को (स्वदेशाभिमुखम् ) अपने देश के अनुकूल (दानमानाभ्याम्) दान व सम्मान से (परदेशात्) विदेश से ( आवहेत्) बुलाये (च) और ( वासयेत्) निवास प्रदान करे 1113 ॥
विशेषार्थ :- जिन ग्रामों में सुभट वीर, योद्धा, क्षत्रिय अधिक संख्या में हों अर्थात् निवास करते हैं तो छोटीछोटी सी बातों में या तिरस्कारादि होने पर तलवारें तान लेते हैं। बराबर युद्ध चालू रखते हैं आपस में हैं 1117 || शुक्र विद्वान ने भी क्षत्रिय विशेषों के विषय में लिखा है :लड़ मरते
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