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________________ नीति वाक्यामृतम् अर्थात् पशु, धान्य, धन-खनिज-लोहा, तांबा, बर्तन, धातु बर्तनों से शोभायमान होने से "राष्ट्र" संज्ञा प्राप्त करता है 11 || यह देश-को स्वामी को, सैन्य, कोषादि की वृद्धि प्रदान करता है अतः "देश" कहलाता है । शुक्र विद्वान ने भी कहा है : स्वामिनः कोशवृद्धिं च सैन्यवृद्धि तथा परम् । यस्मादिशति नित्यं स तस्माद्देश उदाहृतः ॥ उपयुक्त ही अर्थ है । चूंकि स्वामी को नाना प्रकार के सुवर्ण, माणिक, धान्यादि प्रदान कर राजप्रासाद में हाथी, घोड़े, रथादि अनेक एकत्रित करता है अतः इसे "विषय" कहते हैं । जैसा शुक्र ने कहा है : विविधान् वाजिनो गाश्च स्वामि सद्मनि नित्यशः । स्निोति च यतस्माद्विषयः प्रोच्यते बुधैः ।।। व्याख्या वही है । ७॥ देश राजा को कामधेनू के सदृश समस्त मनोरथों को प्रदान करता है । सुख शान्ति से हृदय को अलंकृत करता है, भूषित करता है । अतः इसे "मण्डल" कहते हैं । ॥ यथा : सर्वकाम समुद्धया च नृपतेर्ह दयं यतः । मण्डनेन समा युक्तं कुरुतेऽनेन मण्डलम् ॥ शुक्र विद्वान ।। अर्थ उपर्युक्त हो है। देश-वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र और आश्रम-ब्रह्मचारी, वाणप्रस्थ, गृहस्थ और यति में वर्तमान प्रजाजनों का निवास स्थान अथवा सम्पत्ति का उत्पत्ति स्थान होने से "जनपद" संज्ञा को प्राप्त करता है । शुक्र विद्वान ने भी "जनपद" का यही अर्थ किया है : वर्णाश्रमाणां सर्वेषां द्रव्योत्पत्तिश्च वा पुनः । यस्मात् स्थानं भवेत् सोऽत्र तस्माजनपदः स्मृतः ।।1॥ देश अपने स्वामी की सर्वाङ्गीण उन्नति कर शत्रु राजाओं के हृदय को विदीर्ण करता है इस कारण इसे "दारक" कहते हैं ।6।। जैमिनी विद्वान ने कहा है : भर्तुरुत्कर्षदानेन शत्रूणां हृदयं यतः । दारका दारयन्तिस्म प्रभूता दारकं ततः ।11॥ यद देश अपने धनादि वैभव द्वारा स्वामी को समस्त व्यसनों संकटों से रक्षित करता है इसलिए इसे विद्वानो । 394
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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