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________________ नीति वाक्यामृतम् अथ जनपद-समुद्देश देश के विविध नाम और उनकी सार्थकता पशुधान्यहिरण्य सम्पदा राजते इति राष्ट्रम् ।।1।। भर्तुर्दण्ड कोशवृद्धिं दिशतीति देशः । ॥ विविध वस्तुप्रदानेन स्वामिनः सद्मनि गजान् वाजिनश्च विषिणोति बघ्नातीति विषयः ।।३ ।। सर्वकामधुक्त्वेन नरपति हृदयं मण्डयति भूषयतीति मण्डलम् | 4 || जनस्य वर्णाश्रमलक्षणस्य द्रव्योत्पत्तेर्वा पदं स्थानमिति जनपद: 115 ॥ निजापतेरुत्कर्ष जनकत्वेन शत्रु हृदयानि दारयति भिनत्तीति दारकम् ।।6॥ आत्म समृद्धया स्वामिनं सर्व व्यसनेभ्यो निर्गमयतीति निर्गमः 17 ॥ अन्वयार्थ :- [जहाँ] जिस देश में (पशु, धान्य-हिरण्य) चौपाये, अन्न व चाँदी (सम्पदा) सम्पत्ति (राजते) शोभित हो (इति) यह (राष्ट्रम्) "राष्ट्र" [अस्ति] है 11 ॥ (भर्तुः) स्वामी के (दण्डकोशवृद्धिम्) सैन्य कोष वृद्धि को (दिशति) देता है (इति) वह (देश:) देश है 12॥ (विविध) अनेक (वस्तु) पदार्थ (प्रदानेन) देकर (स्वामिनः) राजा के (सद्भनि) महल में (गजान्) हाथियों को (च) और (वाजिनः) अश्वों को (विषीणोत) विषय बनाता है (बध्नाति) बांधता है (इति) इसे (विषय:) विषय कहा है ।। ॥ (सर्व) सम्पूर्ण (कामधुक्) कामधेनू (त्वेन) पने से (नरपति हृदयम्) राजा के हृदय को (मण्डयति) सजाता है (इति) इससे (मण्डलम्) मण्डल है | 4 ॥ (जनस्य) मनुष्य के (वर्णाश्रमलक्षणस्य) वर्णाश्रम के स्वरूप का (वा) अथवा (द्रव्योत्पत्तेः) द्रव्य की उत्पत्ति का (पदम्) पद (स्थानम्) स्थान (इति) इससे (जनपदः) जनपद है ॥5॥ (निजापते:) अपने स्वामी के (उत्कर्षजनकत्वेन) उत्थान करने से (शत्रुहृदयानि) अरि मन को (दारयति) पीड़ित करता है (भिनत्ति) भेदता है (इति) इससे (दारकम्) "दारक" कहलाता है ।। ।। (आत्मसमृद्धया) स्वयं अभिवृद्धि द्वारा (स्वामिनम्) राजा को (सर्व व्यसनेभ्यो) समस्त संकटों से (निर्गमयति) निकालता है (इति) इससे (निर्गमः) निर्गम विशेषार्थ :- देश गाय, भैंस, अश्व, गजादि, चौपायों आदि धन एवं जो, गेहूँ, मौठ, मटर, चावल आदि धान्यों से सुशोभित रहता है इसलिए इसे "राष्ट्र" कहते हैं In | भागुरि ने कहा है : पशुभिर्विविधैधान्यैः कुप्यभाण्डः पृथग्विधैः । राजते येन लोकेऽत्र तद्राष्ट्रमिति की|ते ।।1।। 393
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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