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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (सर्व रसानाम्) सभी रसों में (लवण संग्रहा:) नमक का सञ्चय करना (उत्तमः) उत्तम [अस्ति] । है 172 ॥ (सर्वरसमयम्) सर्वरस युक्त (अपि) भी (अन्नम्) भोजन (अलवणम्) नमक बिना (गोमयायते) गोबर सम होता है 1030
विशेषार्थ :- घृत, दधि, शर्करादि रसों में नमक का संग्रह करना उत्तम है । अतः विवेकी पुरुष को उसी का संग्रह करना चाहिए । नमक का महत्व भोजन में विशिष्ट होता है । घी, शर्करा, तैलादि रसों से निर्मित नाना व्यञ्जन तैयार होने पर भी वे सभी नमक के अभाव में गोबर के समान हो जाते हैं 172173 1 हारीत विद्वान ने भी यही अभिप्राय व्यक्त किया है :
स्याद्रसैः पञ्चभिर्युक्तं लवणेनोज्झितं यदि । जिह्वा तद्गोभयास्वादं गृहीत्वा रुचिमाप्नुयात् ॥11॥
"।। इति अमात्य समुद्देश॥"
इति श्री परम पूज्य प्रातः स्मरणीय विश्ववंद्य चारित्र चक्रवर्ती मुनिकुञ्जर सम्राट् आचार्य वीतरागी, श्री आदिसागर जी महाराज (अंकलीकर) के पट्टाधीश तीर्थ भक्त शिरोमणि, समाधिसम्राट् आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी संघस्था, परम पूज्य सन्मार्ग दिवाकर कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज की प्रमुखशिष्या 105 प्रथम गणिनी आर्यिका विजयामती ने हिन्दी विजयोदय टीका में 18 वां समुद्देश, परम पूज्य भारत गौरव, तपस्वी सम्राट, सिद्धान्त चक्रवर्ती, अंकलीकर के तृतीय पट्टाधीश श्री सन्मति सागर जी के पावन चरण सानिध्य में सम्पूर्ण किया ।।
"शुभमस्तु, शान्तिरस्तु पुष्ठिरस्तु"
इति
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