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नीतिवाक्यामृतम्
(जीवितम् ) जीवन का (निबन्धनम् ) कारण (च) और (सकलप्रयासः) सम्पूर्ण प्रयास है 1168 ॥
विशेषार्थ :संसार में सञ्चित करने योग्य पदार्थों में सर्वोत्तम धान्य का संग्रह करना है। क्योंकि अन्न प्राणों का आधार है । जीवन निर्वाह का साधन है । इसके लिए मनुष्यों को कृषि आदि के कठोर कष्ट उठाने पड़ते हैं। भृगु का उद्धरण भी यही बताता है कि :
सर्वेषां संग्रहाणां च शस्योऽन्नस्य च संग्रहः । यतः सर्वाणि भूतानि विलस्यन्ति च तदर्थतः । 11 168 ॥
अन्वयार्थ
( खलु ) निश्चय से (मुखे) मुख में (प्रक्षिप्त:) डाला ( खर: द्रम्म) सुवर्ण का सिक्का (प्राण त्राणाय) प्राण रक्षण (न) नहीं करता है । 169 || ( यथा) जैसे विशेष : (धान्यम्) अन्वन ।।
अर्थ:- मुख में सोने का सिक्का भी रख दिया जाय तो प्राणरक्षा नहीं कर सकता । जिस प्रकार कि अन्न प्राणों का संरक्षण करता है । अतः सुवर्णादि से भी अधिक मूल्य अन्न का है । गर्ग ने भी कहा है :प्रभूतैरपि नो द्रव्यैः प्राणत्राणं विधियते } मुखे क्षिप्ते यथन्नेन स्वल्पेनापि विधीयते ॥11 ॥ 69 ॥
अन्वयार्थ :- (
( सर्वधान्येषु) समस्त अन्नों में (को) को (रि) सदैव रहने वाला धान्य
[ अस्ति ] |
अन्य सभी धान्य घुन जाते हैं । परन्तु कोदों कितना ही पुराना होने पर भी घुनता नहीं है । अत: इसे चिरस्थायी माना जाता है । इसका संग्रह करना चाहिए 1170 ॥ भारद्वाज विद्वान का भी इस विषय में यही अभिप्राय हैं :तुष धान्यानि सर्वाणि को द्रवप्रभृतीन् च 1 चिरजीवीनि तान्याहुस्तेषां युक्तः सुसंग्रहः ॥ 11 ॥
आगे संचित धन का उपयोग, प्रधान व संग्रह करने योग्य रस व लवण का महत्व बताते हैं :
अनवं नवेन वर्द्धयितव्यं व्ययितव्यं च 171 || लवण संग्रहः सर्वरसानामुत्तमः 1172 ॥ सर्वं रस प्रथमप्यन्नमलवणं गोमायते ॥73 ॥
विशेषार्थ :- पुराना संचित धान्य व्याजूना ( फसल के मौके पर कृषकों को बाड़ी में देना) देकर बदले में नवीन धान्य की आय द्वारा वृद्धिंगत करना चाहिए और ब्याज द्वारा प्राप्त धान्य व्यय-खर्च करते रहना चाहिए। जिससे कि मूलधन की हानि न हो सके 1171 ॥ वशिष्ठ विद्वान ने भी कहा है :
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अनवं यद्भवेत् सस्यं तन्नवेन विवर्द्धयेत् । वृद्धया प्राप्तो भवेद्यस्तु तस्य कार्यो व्ययो बुधैः । । ॥
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