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नीति वाक्यामृतम्
विशेषार्थ :- जो अधिकारी जिस पद के कर्तव्य का पालन करने में कुशल हो उसे उसी कार्यविभाग में नियुक्त करना चाहिए ।। तभी उसे सफलता और कार्य निर्विघ्न सिद्धि होना संभव हो सकता है 1160 || कर्मचारी चाहे कि राजा को प्रसन्न करने मात्र से अपने कार्य में सफलता प्राप्त हो जायेगी, तो यह सुनिश्चित नहीं है। अपितु स्वयं उस कार्य में कुशलता, बुद्धिप्रयोग और पुरुषार्थ उद्योग गुणों का होना भी अनिवार्य है । तभी वह सफल हो सकता है 1161 || शास्त्रज्ञ पुरुष भी जिस कार्य से अनभिज्ञ होते हैं उनमें कर्त्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। मोहभाव - अज्ञानभाव को प्राप्त हो जाते हैं ।। अतएव अपने-अपने विषय में दक्षता अनिवार्य है ।162॥ भृगुविद्वान ने भी कहा है :येन यन्न कृतं कर्म सं तस्मिन् योजितो नृपै । नियोगी मोहमायाति यद्यपि स्याद्विचक्षणः ॥ 11 ॥
उपर्युक्त ही अर्थ है ।
यदि असह्य संकट आ पड़े तो राजा के परामर्श बिना भी किया जा सकता है। अकस्मात् आपत्ति के सिवाय कोई भी कार्य भूपति की आज्ञा बिना या उसे विदित कराये बिना नहीं करना चाहिए । अर्थात् युद्धकालीन शत्रुकृत उपद्रवों का नाश सेवक को स्वामी से बिना पूछे कर लेना चाहिए इसके अतिरिक्त कार्य स्वामी की आज्ञा बिना कभी भी नहीं करने चाहिए 1163 || भागुरि विद्वान ने कहा है
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न स्वामि वचनात् वाह्यं कर्म कार्यनियोगिना । अपि स्वल्पतरं यच्च मुक्त्वा शत्रु समागमम् 111 ॥
भाव ऊपर ही हैं ।
सहसा धन लाभ होने पर राजकर्तव्य, अधिक मुनाफाखोरों के प्रति राजकर्तव्य व अधिकारियों में परस्पर कलह से लाभ :
सहसोपचितार्थो मूलधनमात्रेणावशेषयितव्यः | 164 || मूलधनाद द्विगुणाधिको लाभो भाण्डोत्यो यो भवति स राज्ञः 1165 ॥ परस्पर कलहो नियोगिषु भूभुजां निधिः 1166 ॥
अन्वयार्थ :- (सहसा ) अचानक ( उपचितः) प्राप्त (अर्थ:) धन (मूलधन ) पूर्वधन (मात्रेण) मात्र से ( अवशेषयितव्यः) कोष में मिलाना चाहिए | 164 || ( मूलधनात् ) मूलधन से ( द्विगुण:) दूने से (अधिक: ) ज्यादा (भाण्डोत्थः) भाण्डा-बर्तन बेचने (लाभ:) नफा (यः) जो (भवति) होता है (सः) वह (राज्ञः ) राजा का है 1165 || ( नियोगिषु) अधिकारियों में ( परस्पर कलहः) विसंबाद (भूभुजाम् ) राजाओं की (निधि) सम्पदा है 1166 ||
यदि लावारिस के मरने पर उसका विशेष धन सहसा प्राप्त होने पर या और भी अन्य निमित्तों से धनार्जन हो तो उसे अपने राजकोष में स्थापित कर राजा को कोष वृद्धि करना चाहिए || अत्रि विद्वान ने भी अधिकारियों से प्राप्त हुई भाग्याधीन सम्पत्ति के विषय में इसी प्रकार कहा है :
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