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________________ नीति वाक्यामृतम् । 1. अत्यन्त क्रोधी हो, 2. जिसका पक्ष बलवान हो - अधिक शक्तिशाली व्यक्ति हो, 3. वाह्याभ्यन्तर मलिनता से दूषित हो, 4. सप्त व्यसनी हो, 5. नीच कुलोत्पन्न हो, 6. हठवादी-किसी की बात नहीं मानने वाला हो, 7. आमदनी से अधिक खर्च करने वाला हो, 8. परदेशी-अनजान हो एवं 9, कृपण-लोभी हो उसे मन्त्री पद का अधिकार नहीं ।। अभिप्राय यह है कि इन दोषों से दूषित व्यक्ति राज्यक्षति का कारण होगा न कि राज्य के उत्थान में सहायक। अगर बाहर से आये अज्ञात व्यक्ति को मंत्री पद या कोषाध्यक्ष बना दिया तो संभव है वह भाग जाय अथवा धोखा दे सकता है । इसलिए जो विश्वस्त हो उसी को नियुक्त करना चाहिए । इसी प्रकार नीच कुलीन व्यक्ति भी प्रजा का पालन करने में समर्थ नहीं हो सकता । इसी प्रकार जिसके साथ वलिष्ट लोग रहेंगे तो वे लोग राज्य विरुद्ध होकर राजा का घात भी कर सकते हैं। व्यसनी मंत्री होगा तो कर्त्तव्याकर्तव्य ज्ञान-विहीन, नीच कुल का अधिक वैभव प्राप्त कर मदोन्मत्त, हठी दुराग्रह-वश, हितकारक उपदेश की अवहेलना करने वाला अधिक खर्चीला-स्वार्थक्षति होने पर राजकीय सम्पत्ति को भी हड़प करने वाला एवं लोभी मंत्री भी कर्तव्य विमुख होता है । अतः राजा को पूर्णतः निर्दोष समझकर, परीक्षा कर ही मंत्री आदि पद प्रदान करना चाहिए ।13॥ शुक्र विद्वान ने भी कहा तीवं क्षुद्रं दुराचारमकु लीनं विदेशजम् ।। एक ग्राहं व्ययप्रायं कृपणं मन्त्रिणं त्यजेत् ।। उपर्युक्त ही अर्थ है । यदि कोपानल से जाज्वल्यमान मंत्री होगा तो वह कारणवश यदि राजा ने उसे दण्डित किया तो वह क्रोधावेश में या तो स्वयं मर जाय अथवा राजा को ही मार डालेगा ।। अतः क्रोधान्ध को मंत्री नहीं बनाना चाहिए 114॥ प्रबल पक्ष वाला मंत्री, नदी में बाढ़ आने पर जिस प्रकार उसका प्रबल प्रवाह वेग तट पर स्थित वृक्षों को जड़ मूल से उखाड़ फेंकती है, उसी प्रकार शक्तिशाली परिवार व मित्रमण्डली वाला मंत्री भी राजरूपी वृक्ष का उन्मूलन कर डालता है ।15 ॥ शुक्र विद्वान ने भी यही अभिप्राय प्रकट किया है : वलवत्पक्षभाग मंत्री उन्मूलयति पार्थिवम् ।। कल्लोलो बलवान् यद्वत्तटस्थं च महीरुहम् ॥1॥ उपर्युक ही अर्थ है। अभिप्राय यह है कि राजा को पुरुष परीक्षा दक्ष होना चाहिए ।15।। यदि मन्त्री राजकोष की आय-व्यय का कांटा बुद्धिपूर्वक नहीं बनायेगा तो राज खतरे में पड़ जायेगा । अर्थात् टैक्स, व्यापार कृषि कर्म आदि कोष वृद्धि के साधनों की वृद्धि न करे तो मूल धन का व्यय हो जाने से राजसत्ता नष्ट हो जायेगी। इसीलिए मंत्री को राजभक्त और उद्योगी होना चाहिए ।। गुरु विद्वान ने भी कहा है मन्त्रिणं कुरुते यस्तु स्वल्पलाभं महाव्ययम् । आत्म वित्तस्य भक्षार्थं स करोति न संशयः ।। 375
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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