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________________ नीति वाक्यामृतम् । खर्च शनैः शनैः टोंटी द्वारा अल्प मात्रा में करता है । इसी प्रकार अमात्य का कर्तव्य है राजा के राजकोष को अधिक मात्रा में शीघ्र परिपूर्ण करने का प्रयत्न करे और खर्च शनै-शनै धीरे और अल्प मात्रा में करे । अर्थात् समयानुकूल सदुपयोग करे दुरुपयोग नहीं 17 ॥ व्यापार व टैक्सादि का सम्यक् प्रयोग करे । गुरु विद्वान का अभिप्राय : आयोऽनल्पतरः कार्यों व्ययान्नित्यञ्च मन्त्रिभिः । विपरीतो व्ययो यस्य स राज्यस्य विनाशकः ॥1॥ अर्थ :- मन्त्रियों को खर्च की अपेक्षा आमदनी अधिक प्रमाण में करने का ध्यान रखना चाहिए । अर्थात् अपनत्व बुद्धि होना चाहिए ।। अन्यथा राज्य क्षति होना अनिवार्य है । मंत्री के कर्तव्यों के विषय में शक्र विद्वान ने कहा है : आगतिर्व्ययसंयुक्ता तथा स्वामी प्ररक्षणम् । तन्त्रस्य पोषणं कार्य मन्त्रिभिः सर्वदैव हि 11 ॥ 6वीं वार्ता का ही अर्थ है । कुरल काव्य में भी मन्त्री का लक्षण कहा है - कुन्दकुन्द देवरचित : महत्वपूर्ण कार्याणां सम्पादन कुशाग्रधीः । समयज्ञश्च तेषां यः स मन्त्री स्यान्महीभुजाम् ।। कुरल प. के. 64 अर्थ :- जो महत्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करने में विशिष्ट बुद्धिमन्त हो समय-स्वशास्त्र और पर शास्त्रों का ज्ञाता हो अथवा किस समय किस प्रकार कौनसा कार्य उचित है कौन अनुचित है इस विषय का मर्मज्ञ राजा का मंत्री होने के योग्य होता है । ॥ आय-व्यय का लक्षण, खर्च का संतुलन, स्वामी व तंत्र का लक्षण : आयो द्रव्यस्योत्पत्ति मुखम् ॥18॥ यथास्वामि शासनमर्थस्य विनियोगो व्ययः ॥७॥ आयमनालोच्य व्ययमानो वैश्रमणोऽप्यवश्यं श्रमणायते ॥ राज्ञः शरीरं धर्मः कलत्रं अपत्यानि च स्वामि शब्दार्थः 1॥ तन्त्र चतुरङ्ग बलम् ।।12॥ अन्वयार्थ :- (द्रव्यस्य) द्रव्य की (उत्पत्तिः) उत्पन्न करने का (मुखम्) द्वार (आयः) आमदनी [अस्ति] है ।18 ॥ (यथा) जैसा (स्वामी) राजा का (शासनम्) शासन व्यवस्था है (अर्थस्य) धन का (विनियोगः) खर्च करना (व्ययः) व्यय [भवति] होता है 19॥ (आयम्) आय को (अनालोच्य) विचार न कर (व्ययमानः) खर्च करने वाला (वैश्रवण:) इन्द्रः (अपि) भी (अवश्यम्) नियम से (श्रमणायते) साधु हो जाता है ।110॥ (राज्ञः) राजा का (शरीरम) देह, (धर्म:) धर्म-स्वभाव (कलत्रम्) स्त्री (च) और (अपत्यानि) सन्तान-पुत्र (स्वामीशब्दार्थः) स्वामी के स्वरूप है ।11॥ (चतुरङ्ग) चारों प्रकार को सेना (बलम्) शक्ति (तन्त्रम्) तन्त्र [अस्ति] 373
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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