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नीति वाक्यामृतम् ।
चना भाड़ नहीं फोड़ सकता" अभिप्राय यह है कि कार्य सिद्धि में पर की सहायता लेना अनिवार्य है । 213 || इसी प्रकार कितना ही ईंधन पड़ा हो अग्नि के अनुकूल पवन नहीं है तो आग प्रज्वलित नहीं हो सकती । उसी प्रकार वलिष्ठ व सुयोग्य राजा भी सैन्य, मन्त्रीबल रहित अकेला राज्य शासन कार्य-सन्धि विग्रहादि कार्यों को करने में समर्थ नहीं हो सकता है ।। श्री वल्लभदेव का उद्धरण भी इसी विषय का पोषण करता है :
किं करोति समर्थोऽपि राजा मन्त्रिवर्जितः ।
प्रदीप्तोऽपि यथा वह्निः समीरण बिना कृतः ।। मन्त्री लक्षण, कर्तव्य व आय-व्यय का दृष्टान्त :
स्वकर्मोत्कर्षांपकर्षयोर्दानमानाभ्यां सहोत्पत्ति विपत्ति येषां तेऽमात्याः ॥5॥ आयोव्ययः स्वमिरक्षा तन्त्रपोषणं चामात्यानामधिकारः ।।6।।
आयव्यय मुखयो मुनि कमण्डलुनिदर्शनम् । । अन्वयार्थ :- (दानमाभ्याम्) राजा द्वारा दान व सम्मान द्वारा जो (स्वकर्म) अपना कर्तव्य (उत्कर्षापकर्षयोः) राजा के उत्थान और हास (सह) साथ (येषाम्) जिनकी (उत्पत्ति विपत्तिः) उत्थान-पतन रहे (ते) वे (अमात्याः) मंत्री [सन्ति] हैं।5।। (आमात्यानाम्) मंत्रियों के (आयः) आमदनी (व्ययः) खर्च (स्वामीरक्षा) राजा की रक्षा (च) और (तन्त्रपोषणम्) सेना का पालन इन चार कार्यों को देखना 16॥
विशेषार्थ :- जो व्यक्ति राजा द्वारा दिये गये दान व सम्मान को प्राप्त कर उसके साथ अपने कर्तव्य का उत्साहपूर्वक पालन करता हुआ सहायक होता है उसे मन्त्री कहते हैं। अर्थात् राजा की सम्पत्ति व विपत्ति में उसके समान सुख व दुःख का अनुभव करते हैं वे "मन्त्री" कहे जाते हैं 15 ॥ शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
अप्रसादे प्रसादे च येषां च समता स्थितिः । अमात्यास्ते हि विज्ञेया भूमिपालस्य संमताः In ॥
अर्थ :- जो राजा के समान ही उसके सुख-दुःख में सुख-दुःख का अनुभव करता है उसे राजमान्य 'अमात्य' कहा जाता है । आगे अमात्य के कार्यों को कहते हैं :- मन्त्री का प्रथम कर्तव्य है आय-सम्पत्ति उत्पादन के कार्य टैक्स, चुंगी आदि की यथा योग्य समुचित व्यवस्था करे । दूसरा है व्यय-स्वामी की आज्ञानुसार आय के अनुकूल प्रजा संरक्षाणार्थ सेना आदि विभागों में आवश्यकतानुसार उचित खर्च करना । तीसरा है - स्वामी रक्षा - राजा व उसके परिवार का संरक्षण और चौथा है चतुरङ्गका पालन-पोषण - अर्थात् हाथी, घोड़े, रथ, पयादों की पालना करना अर्थात् इन्हें यथायोग्य समय के लिए सन्नद्ध रखना । ।
अन्वयार्थ :- (आय-व्यय मुखयोः) राजा की आय व व्यय के द्वारों के लिए (निदर्शनम्) उदाहरण (मुनिकमण्डलुः) मुनिराजों का कमण्डलु है ।।
विशेषार्थ :- मुनि-निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु का कमण्डलु पानी को अधिक और शीघ्र ग्रहण करता है परन्तु १
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